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बेबसी: पहले 700 रूपए में टिकट दिया, न पानी मिला न भोजन, सीधे छोड़ा REWA अब जाएंगे..
बेबसी: पहले 700 रूपए में टिकट दिया, न पानी मिला न भोजन, सीधे छोड़ा REWA अब जाएंगे..
REWA: दो वक्त की रोटी के लिए लोग अपने शहर तक को छोड़कर दूसरे शहरों में जाकर दिन रात मेहनत कर पाई-पाई जोड़ते हैं। ऐसे लोग श्रमिक कहलाते हैं। लेकिन इन मजदूरों पर समस्या का पहाड़ जब टूटता है तो उसे मरहम लगाने में वही लोग पीछे हट जाते हैं जिनके लिए ये मशीन बनकर कार्य कर उन्हें फायदा पहुंचाते हैं।
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कोरोना क्या फैला इनकी तो जिंदगी ही दूभर हो गई है। इन्हें इनके घर तक पहुंचाने के लिए राजनीति हो रही है तो दूसरी तरफ इनकी जिंदगी को धता बताते हुए मजदूरों को मजबूरी से कम नहीं समझा जा रहा है। जैसे तैसे इनसे पीछा छुड़ाने का कार्य आज हर ओर दिख रहा है। चाहे रेलवे हो या राज्य सरकार लगता है सभी इन मजदूरों को उनके गंतव्य तक किसी हाल में छोड़कर पीछा छुड़ाने का कार्य करते नजर आ रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या उन मजदूरों के सीने में झलक रही है जो दिन रात चौबीस घंटे पहले टिकट देकर ट्रेन में बैठे फिर रास्ते में शौचालय तक का पानी पीया और फिर उनके सामने उनका स्टेशन गुजर गया लेकिन उन्हें उतरने नहीं दिया गया। दरअसल यह समझौता रेलवे और राज्य सरकारों के बीच हुआ है।
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मुंबई के पास पनवेल से रीवा के लिए निकली मध्यप्रदेश की पहली 01909 श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन बुधवार को अपने गंतव्य रीवा पहुंची। इसके पूर्व यह ट्रेन जबलपुर खंडवा, इटारसी और जबलपुर होते हुए रीवा पहुंची जहां सभी 13 सौ 18 यात्रियों को उतारा गया। यह ट्रेन सुबह लगभग 9 बजे जब जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंची तो उसमें सवार मजदूरों का दर्द साफ छलका। ट्रेन में बच्चे और महिलाएं बेचैन दिखे।
7 सौ रुपये में मिला टिकटः
प्रदेश में ट्रेन आने के बाद खंडवा के बाद इटारसी और फिर सीधे जबलपुर में रुकी जहां ट्रेन में पानी भरा गया इस दौरान महिलाएं और बच्चे भूखे दिखे। श्रमिकों का कहना था कि रास्ते में उन्हें कहीं भी उतरने नहीं दिया गया। पीने के पानी के लिए तक तरस गए। ट्रेन के शौचालय का पानी पीया। कई श्रमिक यात्रियों ने अपने जेब से टिकट निकालकर दिखाई कि उन्होंने 7 सौ रुपये देकर टिकट दिया गया लेकिन बच्चे बिस्किट तक के लिए तरस गए।
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रीवा से वापस उसी जगह जाएंगेः
श्रमिकों का सबसे बड़ा दर्ज तब छलका जब उनके आंखों के सामने से उनका शहर निकल गया और उन्हें उतरने नहीं दिया गया। जब बुधवार को ट्रेन जबलपुर होते हुए 6 घंटे की देरी से शाम 7.15 बजे रीवा पहुंची तो प्रदेश के 32 जिलों के श्रमिकों को बस में बैठालकर वापस सैकड़ों किलोमीटर उनके उसी शहर लाया गया जहां से ट्रेन गुजरी थी। यह सब राज्य सरकारों और रेलवे के बीच हुए समझौते के कारण ही हुआ है जिसकी वजह से मजदूर तो परेशान हुए और जनता के पैसे की बर्बादी भी हुई। जबकि श्रमिकों का सफर के लिए पंजीयन भी हुआ था तो उन्हें उनके शहर के स्टेशन पर व्यवस्था बनाकर उतारा जा सकता था।
मैं कल्याण में मजदूरी करता हूं। जबलपुर में जब भोजन व्यवस्था के लिए ट्रेन 4 मिनट के लिए रुकी तो वह उतरने का प्रयास करने लगे हालांकि डब्बे में मौजूद आरपीएफ के जवानों ने उन्हें रोक लिया।
-संतोष कुमार, श्रमिक जबलपुर
जिस तरह रेलवे श्रमिक स्पेशल ट्रेन को लेकर दावा कर रहा है। वह गलत है उन्होंने कहा कि कल्याण के आगे से जब वह खंडवा पहुंचे तो ट्रेन के टॉयलेट में पानी आना बंद हो गया था। जिससे समस्या हुई।
रामलाल, श्रमिक रायसेन
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जबलपुर मंडल से बुधवार को 9 श्रमिक ट्रेन निकली हैं। रेलवे और राज्य सरकारों के बीच समझौता हुआ है जिसके कारण ट्रेन को कहीं नहीं रोका गया। चिन्हित स्टेशनों पर यात्रियों के लिए खाना पानी की व्यवस्था की गई।
-बसंत कुमार शर्मा, वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक जबलपुर
श्रमिक स्पेशल ट्रेन तकरीबन 6 घंटे लेट रीवा पहुंची। जिसके बाद अन्य जिलों के श्रमिकों को सड़क के रास्ते बस में बैठाकर रवाना किया गया है। रवाना करने के पूर्व जलपान की व्यवस्था एवं मेडिकल चेकअप के बाद भेजा गया है रीवा जिले के श्रमिकों को ब्लॉक मुख्यालय भेजा गया है।
-बसंत कुर्रे, कलेक्टर रीवा
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