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नए साल में MP में बिजली दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव, आम उपभोक्ताओं पर बढ़ेगा आर्थिक बोझ
जबलपुर. मध्यप्रदेश की बिजली कंपनियों ने हाल ही में बिजली दरों में 7.52% की बढ़ोतरी का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग के सामने रखा है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बिजली कंपनियों के 4,107 करोड़ रुपये के घाटे की भरपाई करना है। हालांकि, यह निर्णय प्रदेश के मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
बिजली खपत के स्लैब में बदलाव का प्रस्ताव
कंपनियों ने 151 से 300 यूनिट खपत के स्लैब को समाप्त करने की सिफारिश की है। वर्तमान में, यह स्लैब 25 लाख से अधिक उपभोक्ताओं पर लागू होता है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो इन उपभोक्ताओं को 500 यूनिट से अधिक खपत करने वालों के समान ऊंची दरों पर बिजली बिल का भुगतान करना होगा।
मौजूदा और प्रस्तावित दरें
- वर्तमान दरः 151 से 300 यूनिट खपत पर ₹6.61 प्रति यूनिट ।
- प्रस्तावित दरः 151 यूनिट से अधिक खपत पर ₹7.11 प्रति यूनिट ।
इससे 151 यूनिट से अधिक बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।
टीओडी (टाइम ऑफ डे) टैरिफ का प्रस्ताव
बिजली कंपनियों ने टाइम ऑफ डे (टीओडी) टैरिफ लागू करने की सिफारिश की है।
दिन में छूटः सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक (8 घंटे) बिजली खपत पर 20% छूट।
सुबह-शाम बिजली महंगी
- सुबह- 6 से 9 बजे
- शाम - 5 से 10 बजे बिजली 20% महंगी मिलेगी।
यह प्रावधान 10 किलोवाट से अधिक खपत करने वाले 11 लाख उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा।
औद्योगिक और कृषि क्षेत्र पर असर
औद्योगिक उपभोक्ताओं को रात की बिजली खपत पर दी जा रही 10% छूट समाप्त करने का प्रस्ताव।
- घरेलू बिजली: दरों में 7.3% वृद्धि की मांग।
- गैर-घरेलू बिजली: दरों में 4.5% वृद्धि की मांग।
- कृषि क्षेत्रः बिजली दरें 8.3% बढ़ाने का प्रस्ताव।
- औद्योगिक क्षेत्रः सबसे अधिक 8.6% वृद्धि की मांग।
महंगी बिजली का बोझ और कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि मध्यप्रदेश पहले से ही देश के सबसे महंगे बिजली दरों वाले राज्यों में से एक है। यह राज्य सरप्लस पावर स्टेट है, यानी यहां बिजली की आपूर्ति मांग से अधिक है। इसके बावजूद, बिजली कंपनियों के प्रबंधन में कमी और ट्रांसमिशन लॉस के कारण उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का भार झेलना पड़ रहा है।
विरोध और आंदोलन की तैयारी
बिजली दरों में इस प्रस्तावित बढ़ोतरी के खिलाफ समाजसेवी संगठनों और राजनीतिक दलों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। जबलपुर के सामाजिक संगठनों ने 9 जनवरी से प्रदेशव्यापी आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है। कांग्रेस ने भी इसे सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बनाते हुए राज्यभर में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।
चुनावी सालों का असर और नई बढ़ोतरी
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि चुनावी वर्षों में बिजली दरों में बढ़ोतरी नहीं की गई थी। 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान बिजली की दरें स्थिर रहीं। अब, 2025 में चुनावी दबाव के अभाव में बिजली कंपनियां 7.52% दर बढ़ाने की मांग कर रही हैं।