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एमपी में शिक्षा का बदलेगा स्वरूप: कक्षा दूसरी तक बस्ता तो पांचवीं तक के छात्रों को किताबें नहीं होंगी अनिवार्य
नए सत्र से स्कूलों का माहौल बदल जाएगा। आंगनबाड़ी में जहां अक्षर ज्ञान पर जोर दिया जाएगा तो वहीं छोटे बच्चों को किताबों और बस्तों के बोझ से मुक्ति दिलाने के लिए रोचक अंदाज में शिक्षा दी जाएगी। नए सत्र से विद्यार्थी के सिर से पढ़ाई का बोझ कम कर उन्हें नॉलेज देने पर फोकस किया जाएगा। जिससे वे रट्टा मार मानसिकता से बाहर आकर कौशल के अनुसार अपना कॅरियर संवार सकें।
बस्ताविहीन रहेंगी पहली-दूसरी कक्षा
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के अनुसार नए सत्र से आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा से ही अक्षर ज्ञान पर ज्यादा जोर दिया जाएगा। इसके लिए केन्द्रों में अधिक पढ़े-लिखे शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। जो पहले तीन वर्ष तक छात्रों की शिक्षा का बेस मजबूत करेंगे। इतना ही नहीं प्राथमिक कक्षाओं की किताबें केवल शिक्षकों के लिए छापी जाएंगी। पहली और दूसरी कक्षा बस्ताविहीन रहेंगी। उनके अक्षर ज्ञान को बढ़ाने पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। वहीं तीसरी से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए भी किताबें अनिवार्य नहीं रहेंगी। जिससे बच्चों के सिर से पढ़ाई का बोझ तो कम होगा ही साथ ही अच्छी शिक्षा मिलने से उनके कौशल में निखार आ सकेगा।
पांचवीं तक मातृभाषा में मिलेगी शिक्षा
नई शिक्षा नीति के बारे में स्कूल शिक्षा मंत्री की मानें तो पांचवीं तक छात्रों को मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदान की जाएगी। सामान्य गणित और सामान्य ज्ञान की शिक्षा रोचक उदाहरणों के जरिए प्रदान की जाएगी। पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों को किस्से-कहानियों के माध्यम से शिक्षित किया जाएगा। बच्चों को पहले तीन साल आंगनबाड़ी और 12 साल स्कूलों में अध्ययन करना होगा। पहली से पांचवीं तक की किताबें तैयार कर ली गई हैं। आगामी चार वर्षों में नया पैटर्न 12वीं कक्षा तक लागू हो जाएगा।
कक्षा छठवीं से मिलेगी कम्प्यूटर की शिक्षा
स्कूल शिक्षा मंत्री के अनुसार छात्रों को ग्रेडिंग सुधारने और अपने हुनर को निखारने के लिए कक्षा छठवीं से ही ही कम्प्यूटर और मोबाइल एप्लीकेशन की शिक्षा प्रदान की जाएगी। जिसके लिए स्कूलों में डिजिटल इंतजाम किए जाएंगे। स्कूलों में वर्चुअल लैब विकसित की जाएगी। विषयवार कंटेंट को छात्र आसानी से समझ व सीख सकें इसके लिए कंटेंट क्षेत्रीय भाषा में अनुवादित किए जाएंगे। इसके अलावा कक्षा नौवीं से हायर सेकेण्ड्री तक हिन्दी, अंग्रेजी एवं संस्कृत अनिवार्य रहेगी। जबकि अभी तक ऐच्छिक होने के कारण संस्कृत विषय को हटा दिया जाता रहा है।