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एमपी के सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल, विशेषज्ञ डॉक्टरों के 68 फीसदी पद हैं खाली
मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल है। इन अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों का टोटा बना हुआ है। कई शहरों में अस्पताल के नाम पर चमचमाती बिल्डिंग तो तान दी गई किंतु मरीजों को समुचित इलाज पाने के लिए भटकना पड़ रहा है। यदि गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज यहां पहुंच जाए तो अच्छा इलाज मिलने की गारंटी नहीं है। ऐसे में मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करने के लिए विवश होना पड़ता है।
विशेषज्ञ डॉक्टरों का टोटा
एण्मपी के सरकारी अस्पताल विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 68 फीसदी पद खाली पड़े हुए हैं। जबकि चिकित्सका अधिकारियों 38 फीसदी पद रिक्त हैं। एमपी के 13 मेडिकल कॉलेजों के हालात भी बेहतर नहीं हैं। यहां पर 2814 टीचिंग फैकल्टी वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों की पोस्ट है किंतु यहां केवल 1800 डॉक्टर ही मौजूद हैं।
रेफर कर दिए जाते हैं मरीज
भोपाल से सटे विदिशा में तीन साल पूर्व 550 करोड़ की लागत से नया मेडिकल कॉलेज और 300 करोड़ की लागत से नया जिला अस्पताल बनाया गया। यहां मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल दोनों में ही एक भी कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट समेत एक भी स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं। दुर्घटना में यदि कोई हेड इंजरी का मरीज आ जाए तो उसे भोपाल रेफर कर दिया जाता है। यहां पर ऑपरेशन थिएटर तो है किंतु सर्जन की तैनाती नहीं की गई है। डीन डॉ. सुनील नंदीश्वर का कहना है कि बिल्डिंग से कोई अस्पताल सुपर स्पेशिलिटी नहीं बन जाता। विशेषज्ञ डॉक्टरों के अभाव में हर रोज तमाम मरीजों को एम्स या हमीदिया के लिए रेफर करना पड़ता है। ऐसा ही हाल एमपी के आधे से अधिक मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों का भी है।
इन मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग स्टाफ के पद खाली
एमपी के कई मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग स्टाफ के पद खाली पड़े हुए हैं। जिनमें जीएमसी भोपाल में 37 पद, एसएसएमसी रीवा 42, एनएससीबी जबलपुर 96, जीआरएमसी ग्वालियर 44, एमजीएम इंदौर 76, छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज 92, दतिया मेडिकल कॉलेज 42, शिवपुरी मेडिकल कॉलेज 83, शहडोल मेडिकल कॉलेज 89, खंडवा मेडिकल कॉलेज 80, रतलाम मेडिकल कॉलेज 58, विदिशा मेडिकल कॉलेज 72 और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में 44 पद रिक्त हैं।