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एमपी में टीचर बनने के लिए अभ्यर्थी बन गए अंधे-बहरे, दिव्यांग कोटे की भर्ती में 80 के सर्टिफिकेट निकले फर्जी
मध्यप्रदेश में टीचर बनने के लिए अभ्यर्थी अंधे-बहरे तक बन गए। इनके द्वारा विकलांगता के फर्जी सर्टिफिकेट बनवाए गए और पद पाने जुगत भिड़ाई गई। एमपी में टीचर वैकेंसी के तहत दिव्यांग के तय कोटे में सर्वाधिक अभ्यर्थियों की भर्ती मुरैना जिले से की गई। जिसके बाद मामला तूल पकड़ा और यह सारा खेल उजागर हो गया। जांच में पाया गया कि नौकरी पाने के लिए दिव्यांगता के फर्जी प्रमाण पत्र तैयार किए गए। अब नौकरी तो दूर की बात रही इन पर एफआईआर कराने की भी तैयारी की जा रही है।
दिव्यांग कोटे के लिए आरक्षित थे 1086 पद
एमपी में प्राथमिक टीचर पद के लिए दिव्यांग कोटे के तहत कुल 1086 पद आरक्षित किए गए थे। जिनमें से 755 पदों पर अभ्यर्थियों का चयन किया गया। इसमें सर्वाधिक 450 शिक्षक मुरैना जिले से चुने गए। इन पदों पर चयनित ज्यादातर अभ्यर्थी बहरे हैं। किंतु इनसे जो भी सवाल पूछा जाता है वह इसका फर्राटे से जवाब देते हैं। इनके द्वारा सारा खेल विकलांगता के फर्जी प्रमाण पत्र द्वारा रचा गया। चौंकाने वाली बात तो यह है कि कई अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्रों पर ऐसे सरकारी डॉक्टरों के हस्ताक्षर हैं जो पूर्व में ही रिटायर हो चुके हैं। यह खेल उजागर होने के बाद शिक्षा विभाग में खलबली मच गई है।
80 लोगों पर मामला दर्ज करने के आदेश जारी
भर्ती परीक्षा में सर्वाधिक मुरैना जिले के 450 आवेदकों का चयन प्राथमिक शिक्षक के लिए दिव्यांग कोटे से हुआ। जब इनके प्रमाण पत्रों की जांच कराई तो 80 लोगों के प्रमाण पत्र संदिग्ध पाए गए। सरकार द्वारा ऐसे 80 लोगों पर मामला दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं। जिनमें से 77 की रिपोर्ट भी आ चुकी है। ओवरराइटिंग वाले तीन प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है। इनके द्वारा विकलांगता के फर्जी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल किया गया है। बताया गया है कि कर्मचारी चयन मंडल मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित प्राथमिक शिक्षक पद की पात्रता परीक्षा में नखनौजी, अटेर भिंड के राहुल शर्मा की 56वीं रैंक थी। 150 अंकों में से उन्हें 124.84 अंक हासिल हुए थे। जिनका बिना किसी सर्टिफिकेट के सीधे चयन हो सकता था किंतु इन्होंने भी दिव्यांग कोर्ट से आवेदन भरा। जांच के दौरान राहुल का भी दिव्यांग प्रमाण पत्र फर्जी निकला अब नौकरी तो दूर एफआईआर की भी तैयारी है।
18 हजार पदों के लिए हुई थी परीक्षा
प्राथमिक शिक्षक के कुल 18 हजार पदों के लिए कर्मचारी चयन मंडल द्वारा पात्रता परीक्षा का आयोजन किया गया था। जिसमें दिव्यांगों के लिए 1086 पद आरक्षित थे। परिणाम के आधार पर 755 पदों पर आवेदकों का चयन हुआ है। जिसमें चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 450 दिव्यांग टीचर केवल मुरैना जिला से चुने गए हैं। एक जिले से इतनी संख्या में दिव्यांग टीचर बनने का मामला प्रकाश में आने के बाद से ही सवाल उठने लगे थे। जिसकी शिकायत आयुक्त निःशक्तजन कल्याण संदीप रजक से दिव्यांगों द्वारा की गई थी। जिनके द्वारा आयुक्त लोक शिक्षण एवं आयुक्त जनजातीय कार्य विभाग को नोटिस जारी कर दिव्यांग कोटे से चयनित शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की जांच के निर्देश दिए गए थे।
ऑडियोलॉजिस्ट के बनाए फर्जी हस्ताक्षर
एमपी के मुरैना में प्राथमिक शिक्षक के दिव्यांग कोटे के तहत 80 शिक्षकों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए। जिनमें से 53 अभ्यर्थियों ने श्रवण बाधित का फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाया था। जबकि 26 ने दृष्टि बाधित और 1 अभ्यर्थी ने आर्थोपेडिक दिव्यांग का सर्टीफिकेट बनवाया। जांच के दौरान यह फर्जी पाए गए। जांच से यह पता चला कि इन शिक्षकों ने ऑडियोमेट्री और बैरा रिपोर्ट खुद अथवा गिरोह द्वारा बनाकर प्रस्तुत की है। जिन पर ऑडियोलॉजिस्ट की न तो राइटिंग है और न ही हस्ताक्षर है। इन पर राइटिंग और हस्ताक्षर की कॉपी करने का प्रयास किया गया है।
जांच के लिए कलेक्टर लिख चुके हैं पत्र
मुरैना, श्योपुर जिले से पिछले पांच वर्ष में दिव्यांगता के प्रमाण पत्र मैन्युअली जारी किए गए हैं जिनका रिकार्ड भी अस्त व्यस्त है। कई चिकित्सक रिटायर हो चुके हैं इसका भी जमकर फायदा फर्जीवाड़ा करने वाली गैंग द्वारा उठाया गया। मुरैना कलेक्टर अंकित अस्थाना ने आयुक्त लोक शिक्षण अनुभा श्रीवास्तव को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि मुरैना से बने दिव्यांग प्रमाण पत्रों के आधार पर जिन लोगों ने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षक पद पर नियुक्ति पाई है उनके दिव्यांग प्रमाण पत्र भिजवाएं, जिनका भौतिक सत्यापन किया जाएगा।