मध्यप्रदेश

विंध्य की अनोखी एवं इकलौती कला, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही..: REWA RIYASAT NEWS

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 12:17 PM IST
विंध्य की अनोखी एवं इकलौती कला, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही..: REWA RIYASAT NEWS
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विंध्य की अनोखी एवं इकलौती कला, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही..: REWA RIYASAT NEWS विंध्य में एक ऐसी कला का उद्भव हुआ जो देश में दूसरी

विंध्य की अनोखी एवं इकलौती कला, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही..: REWA RIYASAT NEWS

रीवा (REWA RIYASAT NEWS) । विंध्य में एक ऐसी कला का उद्भव हुआ जो देश में दूसरी कहीं नहीं है। यही नहीं विश्व में ऐसी कला विकसित नहीं हो पाई है। इसे सुपाड़ी आर्ट के नाम से जाना जाता है। भारत के विंध्य क्षेत्र स्थित रीवा में सुपाड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं।

भारत में सुपाड़ी पूजा पाठ और खाने के काम आती है। लेकिन सुपाड़ी से खिलौने बनाना आश्चर्य चकित करने वाला है। लेकिन मध्य प्रदेश के रीवा शहर में कुछ लोग सुपारियों के तरह-तरह के खिलौने बनाते हैं। सुपारियों से बने सुंदर और मनमोहक खिलौने देखकर देशी विदेशी पर्यटक सभी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। छोटी सी सुपारी को छील छील कर अगर एक टेबल लैंप या विश्व के ऐतिहासिकं अजूबे के माडल ताजमहल बनाकर खड़ाकर दिया जाए तो वाकई दाँतों तले उँगली दबाने की बात ही होगी।

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विंध्य की अनोखी एवं इकलौती कला, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही..: REWA RIYASAT NEWS

ऐसी मान्यता है कि इसकी शुरुआत भारत में रीवा राजघराने द्वारा सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल करने के लिए अलग.अलग डिजाइन से कटवाने से की गई थी। भारत की लेडी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस कला से प्रभावित थींएसन 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने भेंट किए गए थे। इतिहास में दर्ज है सबसे पहले 1942 में भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी का सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था। बाद में इस कला की ऐसी धूम मची कि ऐसा कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता था जिसमें सुपारी की गणेश प्रतिमा गिफ्ट नहीं की जाती हो।

बाहर से आने वाले अतिथि को सुपारी के ही खिलौने दिए जाते हैं। गणेश प्रतिमा के साथ.साथ अधिक लोकप्रियः सुपारी की स्टिक मंदिर सेट कंगारू सेट टी.सेट महिलाओं के गहनेए लैंप आदि प्रमुख हैं। भारत में कलाकार केवल अपनी कला को जीते हैं। इन कलाकारों के कारण देश और दुनिया में विशेष स्थान का नाम शामिल है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में सुपारी के खिलौनों का जिक्र किया है।

वर्तमान में इस ऐतिहासिक कला की तीसरी पीढी कार्य कर रही है। वर्तमान कलाकार दुर्गेश कुंदेर बताते हैं सन 1942 में उनके दादा भगवानदीन ने महाराजा गुलाब सिंह को सुपारी भेंट की थी। एक छड़ी महाराजा मार्तंड सिंह को उपहार में दी गई थीए जिस पर 51 रुपये का पुरस्कार मिला था। समय के साथए बाजार की मांग के अनुसार खिलौने बनाए गए। लोग अपने प्रियजनों को उपहार देते हैंए अपने ड्राइंग रूम को सजाने के लिए रखते हैं।

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