मध्यप्रदेश

दुधारू पशुओं की संख्या घटने के बावजूद मिल रहा पर्याप्त दूध, जाने क्या है कारण : REWA NEWS

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 12:10 PM IST
दुधारू पशुओं की संख्या घटने के बावजूद मिल रहा पर्याप्त दूध, जाने क्या है कारण : REWA NEWS
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दुधारू पशुओं की संख्या घटने के बावजूद मिल रहा पर्याप्त दूध, जाने क्या है कारण : REWA NEWS रीवा। यदि हमारा खानपान शुद्ध नहीं है तो हमारा

दुधारू पशुओं की संख्या घटने के बावजूद मिल रहा पर्याप्त दूध, जाने क्या है कारण : REWA NEWS

रीवा (REWA NEWS) । यदि हमारा खानपान शुद्ध नहीं है तो हमारा तन-मन शुद्ध नहीं हो सकता। इस दिशा में न तो सरकार ध्यान दे रही है और आम जनमानस सोच पा रहा है। जो मिला वही खाते जा रहे हैं, यहीं कारण हमारा जीवन भी असमय बीमारी की चपेट में आता जा रहा है। देखा जा रहा है कि दुधारू पशुओं की संख्या लगातार घटी है।

आधुनिक शानो शौकत के जमाने में लोग दुधारू पशु पालने से कतरा रहे हैं। फिर भी पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध है, कहां से आ रहा है। सहज ही समझ जा सकता है कि मिलावटखोरी चरम है। शहर से लेकर गांव तक दूध व्यवसाई पर्याप्त मात्रा में दूध जनमानस तक पहुंचा रहे हैं। जिससे साफ जाहिर होता है कि मिलावटखोरी ही एक ऐसा साधन इन दुग्ध व्यवसाइयों के लिए बचा है जो दूध आपूर्ति के लिए मुख्य स्रोत है।

दुधारू पशुओं की संख्या घटने के बावजूद मिल रहा पर्याप्त दूध, जाने क्या है कारण : REWA NEWS

आज दूध व्यवसाई विभिन्न तरीके अपना कर थोड़ी सी लागत में भारी मात्रा में शुद्ध दूध की तरह ही नकली दूध तैयार कर रहे हैं। इसी दूध से बनी खाद्य सामग्री आम जनमानस के लिए घातक साबित हो रही है। गांव से लेकर शहर तक बिक रहे नकली दूध पर शासन-प्रशासन चुप्पी साधे हुए है। जबकि विभिन्न प्रकार की फैल रही बीमारियों का असली वजह बन रहे हैं।

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ऐसे न रहा नकली दूध

नकली दूध के संबंध में जब दूध व्यवसाई से चर्चा की गई तो नाम का खुलासा न करने की शर्त पर बताया कि बर्तन में शैंपू डालकर उसमें आधा लीटर रिफाइन मिलाकर आधा लीटर आधा लीटर दूध डाला जाता है। दूध को गाढ़ा करने के लिए चीनी का बुरादा और एक बाल्टी पानी मिलाया जाता है। ईजी लिक्विड में सिघाड़े का आटा और उसमें खाने का सोडा मिल्क पावडर आदि से नकली दूध बनाया जाता है।

ऐसे करें नकली दूध की पहचान

नकली दूध की पहचान करने के लिए दूध उबालने पर उसकी छाले प्लास्टिक जैसी पतली उतरे तो समझा जाये कि दूध मिलावटी है। अगर टाइल्स के टुकड़े पर कच्चे दूध की कुछ बूंदे गिरने पर एक लाइन में उसकी धार नहीं बनती तो समझें दूध मिलावटी है। इसी तरह अरहर की दाल के पावडर को 5 मिनट कच्चे दूध में डालें, अगर रंग लाल हो जाय तो समझ लें कि दूध मिलावटी है। बर्तन या टेस्ट ट्यूब में थोड़ा सा दूध लेकर उसमें मिलाकर हिलाएं अगर दूध में शैंपू मिला होगा तो झाग बनेगा। इसी तरह अन्य कई तरीके से नकली दूध की पहचान करने के हैं।

दूध की आवश्यकता बढ़ी लेकिन दूध देने वाले पशु घटे

जब आजादी कम थे तब मवेशियों की संख्या में मानव संख्या से ज्यादा थी। तब सिर्फ दूध ही जीवन का साधन था। आज के दौर में आजादी चरम पर है। साथ ही मशीनी युग के कारण पशुधन की महत्त घट गई। लेकिन दूध की आवश्यकता बढ़ी है। चाय की चुस्कियों से लेकर मिठाइयां सहित कई आइटम दूध से तैयार होते हैं।

इस पशुधन की कमी होने के बावजूद होटलों की संख्या बढ़ी है। दुग्ध उत्पाद भरे पड़े हैं। ऐसी स्थिति में दूध कहां से आ रहा है। आसमान से तो टपक नहीं रहा है। दूध की कमी को पूरा करने के लिए हम नये तरीके इजाद कर रहे है। वह यही कि हम नकली दूध का निर्माण कर रहे हैं और अपने जीवन से ही खिलवाड़ कर रहे हैं।

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