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एमपी ग्वालियर में साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसालः अपनों ने भुलाया फर्ज तो मुस्लिम भाइयों ने दिया बुजुर्ग की अर्थी को कंधा
ग्वालियर में साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल देखने को मिली। एक वृद्धा की मौत के बाद जब अपने सगे संबंधी फर्ज निभाना भूल गए तो मुस्लिम भाइयों ने बुजुर्ग महिला की अर्थी को कंधा दिया। इस दौरान मुस्लिम परिवार ने एक हिन्दू परिवार की तरह बुजुर्ग की देखभाल की और मुक्तिधाम तक अर्थी को कंधा देकर पहुंचाया। अपनों से ठुकराए जाने के बाद वृद्ध महिला दरगाह परिसर में रह रही थी।
क्या है मामला
ग्वालियर के न्यू रेलवे कॉलोनी के पास दरगाह निवासी रामदेही माहौर के परिवार में एकमात्र उनकी बेटी थी। उनकी बेटी दिल्ली की मंगोलपुरी में रहती हैं ग्वालियर में 90 वर्षीय वृद्धा रामदेही अपने भाइयों के साथ रहती थी। किंतु कुछ वर्षों पूर्व उनके भाइयों की मौत हो गई और वह बेसहारा हो गईं। लोगों की मानें तो इस दौरान उनके भतीजों द्वारा वृद्धा को खाना भी नहीं दिया जाता था जबकि उनके साथ मारपीट की जाती थी। कुछ महीने पूर्व वृद्धा को घर से भी निकाल दिया गया था। जिसके बाद न्यू रेलवे कॉलोनी में रहने वाले नगर निगम कर्मचारी शाकिर खान के परिवार ने बुजुर्ग महिला को सहारा दिया। अपनों द्वारा ठुकराए जाने के बाद वृद्धा को पड़ोसियों ने सहारा देकर उनको दरगाह परिसर में रहने का इंतजाम किया गया।
मुस्लिम परिवार बने सहारा
शाकिर खान ने वृद्धा को दरगाह में रहने के लिए एक कमरे का इंतजाम कराया गया। जहां उन्हें खाना के साथ सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई गईं। एक बेटे की तरह सारे फर्ज भी उनके द्वारा निभाए गए। गुरुवार को अचानक बुजुर्ग महिला का निधन हो गया। बेटी के दिल्ली में होने के कारण अंतिम संस्कार का संकट खड़ा हो गया। इस दौरान दिल्ली में रह रही उनकी बेटी को खबर भिजवाने के साथ ही रिश्तेदारों व भतीजों को भी सूचना दी गई। किंतु सौ से दो सौ मीटर की दूरी पर रह रहे वृद्धा के भतीजे व परिजन नहीं आए। इस दौरान पार्थिव देह को मुक्तिधाम तक पहुंचाने का दायित्व भी मुस्लिम परिवार ने बखूबी निभाया। बुजुर्ग की अर्थी को कंधा मफदूत खान, मासूम खान, इरफान खान ने देते हुए बैंड की मातमी धुन के बीच उनकी शवयात्रा निकाली गई।
बेटी ने दी चिता को मुखाग्नि
परिजनों के नहीं आने से वृद्धा के मुखाग्नि का संकट पैदा हो गया क्योंकि बेटा या भतीजा मुखाग्नि दे सकता है। किंतु भतीजों ने उनसे किनारा कर लिया। इस दौरान बेटी को मां के मौत की खबर मिलते ही वह ग्वालियर पहुंच गई। बुजुर्ग की 45 वर्षीय बेटी ने यह फैसला किया कि वह अपनी मां के लिए बेटे का फर्ज पूरा करेगी। जिसके बाद शीला ने मां की चिता को मुखाग्नि देकर सारे संस्कार पूरे किए। उसके इस फैसले की सभी ने सराहना की है।