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दिवाली में जुआ क्यों खेला जाता है: दीपावली में जुआ खेलने की परंपरा कैसे शुरू हुई?
दिवाली में जुआ खेलने के पीछे की कहानी: दिवाली दीपों का त्यौहार है, दीपावली क्यों मनाई जाती है ये तो आपको मालूम ही होगा! लेकिन दिवाली में जुआ क्यों खेला जाता है इसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे। दिवाली में जुआ खेलने की परंपरा कैसे शुरू हुई. दिवाली में जुआ खेलने के पीछे की कहानी जानकर आपको सब मालूम हो जाएगा।
भारत में जुआ का इतिहास
History of Gambling in India: जुआ खेलने का मतलब सिर्फ ताश के खेल में पैसा लगाना नहीं होता। भारत में कालांतर से जुआ खेला जाता रहा है. जैसे महाभारत में पांडवों ने कौरवों के साथ खेला था. जुआ ऐसा खेल था जिसे देवता भी खेला करते थे. जब लोगों के पास शतरंज, लूडो, सांप सीढ़ी, क्रिकेट जैसे स्पोर्ट्स और वीडियो गेम्स नहीं थे तब भारत सहित कई देशों में कौड़ियों, पासों से यह खेल खेला जाता था.
हिंदी में हम इसे जुआ, इंग्लिश में गैंबलिंग और संस्कृत में जुआ को 'द्यूत-क्रीड़ा' कहते हैं. जैन साहित्य में संस्कृत में भी जुआ से जुड़ा एक श्लोक मिलता है
अन्योन्यस्येर्षया यत्र विजिगीषा द्वयोरिति।
व्यवसायादृते कर्मं द्यूतातीचार इष्यते।
अर्थात- शर्त लगातार, चौपड़, शतरंज या कोई भी खेल खेलना, जानवरों को आपस में लड़ाकर पैसों की बाज़ी लगाना जुआ होता है.
शिव और पार्वती के जुआ खेलने की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार
'भगवान शंकर एक बार जुए में माता पार्वती से हार गए थे, हार के बाद वह गंगा के तट में चले गए थे. बाद में माता पार्वती उन्हें मनाकर घर ले आती हैं और दोनों के बीच फिर से पासे का खेल होता है. इस बार भगवान विष्णु और नारद मुनि की मदद से शिव जी जीत जाते हैं''
ऋग्वेद में जुआ के बारे में क्या लिखा है
ऋग्वेद दुनिया का सबसे पुराना ग्रन्थ है जो 5 हज़ार साल से ज़्यादा पुराना है. ऋग्वेद के 10वें मंडल में एक जुआरी की कथा लिखी हुई है. जिसके अनुसार
''एक जुआरी कहता है, मैंने जुए में सब कुछ गंवा दिया, मैं गरीब हो गया, मुझे कोई उधार नहीं देता, मेरी सुन्दर पत्नी छोड़ कर चली गई. आगे के मन्त्रों में उसे जुआ छोड़ खेती करने की सलाह दी गई थी.
दिवाली में जुआ क्यों खेलते हैं
एक बार माता पार्वती ने शंकर जी को जुआ में हरा दिया था, वह अमावस्या की रात जुआ खेल रहे थे. जीत के बाद मां पार्वती ने एलान किया था कि जो भी इस अवसर पर पूरी रात जुआ खेलेगा उसपर सालभर देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। वह अमावस्या की रात वही वक़्त था जब श्री राम रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटे थे और उनके आने पर पूरी नगरी को दीपों से सजाया गया था. तभी से दिवाली की रात जुआ खेलने की प्रथा की शुरआत हुई थी.