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1990 में किसकी सरकार थी: कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन का जिम्मेदार कौन था, इतिहास जान लो

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत
14 April 2023 12:15 PM IST
Updated: 2023-04-14 06:38:35
1990 में किसकी सरकार थी: कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन का जिम्मेदार कौन था, इतिहास जान लो
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Whose government was there in 1990: जब कश्मीर में कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार और पलायन हो रहा था केंद में कांग्रेस नहीं नेशनल फ्रंट सरकार में थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधान मंत्री थे

भारत में 1990 में केंद्र सरकार किसकी थी: द कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद देश के लोगों में कश्मीर के इतिहास को जानने के प्रति जिज्ञासा बढ़ी है, फिल्म के बाद देश दो गुटों में बदल गया है. एक ऐसे हैं जो इस नरसंहार का दोष कांग्रेस पर फोड़ रहे हैं तो कुछ ऐसे हैं जो इस अमानवीय घटना का जिम्मेदार भाजपा को बता रहे हैं. लेकिन साल 1990 में ना तो कोंग्रस सत्ता में थी न बीजेपी।

1990 में केंद्र में किसकी सरकार थी


कश्मीर का इतिहास

साल 1990 में भारत में केंद्र सरकार नेशनल फ्रंट की थी और प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे. साल 1989 के लोक सभा चुनाव में वीपी सिंह ने भारतीय जनता पार्टी, नेशनल फ्रंट के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी. लेकिन उस वक़्त बीजेपी कोई बड़ी पार्टी नहीं थी. वीपी सिंह देश के 7 वें प्रधान मंत्री थे.

वीपी सिंह भले नेशनल फ्रंट नेता थे लेकिन उनकी राजनितिक शुरुआत कांग्रेस से हुई थी. साल 1969 में वह कांग्रेस में शामिल हुए थे, 1971 में उन्हें लोक सभा सांसद बनाया गया और 1976 से लेकर 1977 तक वह देश के वाणिज्य मंत्री रहे. 1980 में वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे.

'साल 1984 से लेकर 1987 तक वह राजीव गांधी के मंत्रालय में वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ राज्य सभा के नेता रहे थे. जब वो देश के रक्षा मंत्री थे तभी बोफोर्स घोटाला सामने आया था और इसके बाद वीपी सिंह ने इस्तीफा दिया था. कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने पीएम उम्मीदवार के लिए नेशनल फ्रंट से अपना नाम पेश किया और 1989 में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी थी. हालांकि उनका कार्यकाल ज़्यादा दिन तक रहा नहीं वह सिर्फ 2 दिसम्बर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक पीएम थे और उनके बाद 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक उसी पार्टी से चंद्रशेखर पीएम रहे और उनके बाद फिर से कांग्रेस सत्ता में आई और जून 21 1911 से मई 1996 तक कांग्रेस के नेता पीवी नरसिम्हा राओ प्रधानमंत्री रहे'.

तो कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का जिम्मेदार कौन था


असली जिम्मेदार तो कट्टरपंथी मुस्लमान थे जो पाकिस्तान से प्रभावित होकर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर रहे थे. यह सिलसिला साल 1990 से नहीं सदियों से चल रहा था. कांग्रेस की सरकार में हालत और बेकाबू हो गए थे. किसी ने भी उन्हें रोकने या पकड़ने की कोशिश नहीं की थी.

द कश्मीर फाइल्स के आलोचकों का कहना है कि कश्मीर में जो हिंसा हुई वह लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा की वजह से हुई, वह रथयात्रा जो कश्मीर से 1373 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में हुई. बहुत से लोग कहते हैं की इसी रथयात्रा के कारण कश्मीर में हिन्दुओं के साथ हिंसा हुई, सवाल ये है कि हिंसा सिर्फ कश्मीर में क्यों हुई, देश के अन्य राज्यों में ऐसी घटनाएं सामने क्यों नहीं आईं, जबकि कश्मीर में कोई रथयात्रा नहीं निकली थी. कश्मीर में नरसंहार और पलायन की शुरुआत 19 जनवरी से हुई और अडवाणी की रथ यात्रा 25 सितम्बर 1990 से शुरू होकर 30 अक्टूबर को ख़त्म हुई थी

क्या 1990 में बीजेपी सत्ता में थी?

इस बात को कोई नाकार नहीं सकता है कि 1990 में और खासकर उस वक़्त जब कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा था तब बीजेपी केंद्र सरकार की समर्थन वाली पार्टी थी. 86 सांसदों के साथ बीजेपी ने नेशनल फ्रंट का समर्थन दिया था साथ 54 सांसदों वाली वाममोर्चा ने भी केंद्र का साथ दिया था. इस वाममोर्चे में सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी और फार्वड ब्लॉक के सांसद थे,

बीजेपी को दोष नहीं दिया जाना चाहिए

कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन में जो लोग बीजेपी को दोषी ठहरा कर पूर्व सरकार कांग्रेस के दामन से इस कत्लेआम के दाग मिटाने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सिर्फ खुदको धर्मनिर्पक्ष साबित करने के लिए 'मुफ़्ती मोहम्मद सईद' को देश का गृहमंत्री बना दिया था.

मुफ़्ती मोहम्मद सईद और कश्मीरी हिंदुओं का पलायन


साल 1990 में देश के गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद थे, जो शुरू से अलगावादी नेता थे, उनकी बेटी मेहबूबा मुफ़्ती को तो आप जानते होंगे, मुफ़्ती मोहम्मद सईद कश्मीर से नहीं यूपी के मुज्जफरनगर से चुनाव लड़ते थे. यहीं से शुरू हुआ था असली खेल.

मुफ़्ती मोहम्मद सईद के गृहमंत्री बनने के ठीक 6 दिन बाद उनकी दूसरी बेटी रुबिया सईद का अपहरण हो जाता है, अपहरण करने वाले पाकिस्तानी समर्थक आतंकी और आतंकी यासीन मलिक था। 5 दिन तक अपहरण का ड्रामा चला था, यह कोई अपरहण नहीं एक खेल था. किडनैप करने वालों ने रुबिया सईद को रिहा करने के बदले 5 आतंकियों को रिहा करने की डिमांड की थी. गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने आतंकियों की डिमांड पूरी कर दी और रुबिया सुरक्षित रिहा हो गई.

जैसे ही आतंकी रिहा हुए, कश्मीर में हिन्दू विरोधियों के हौसले बुलंद हो गए, और कश्मीरी पंडितों पर इस्लामिक आतंकियों और वहां के लोगों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया।

आज मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी मेहबूबा मुफ़्ती किस सोच और विचारधारा की नेता है पूरा देश जनता है, आतंकियों का समर्थन करने वाली मेहबूबा के पिता भी उसी विचारधारा के थे. जब कश्मीर में नरसंहार चल रहा था तब राज्य में फारूक अब्दुल्ला की सरकार थी जिसमे एन वक़्त में पद छोड़ दिया था और लंदन भाग गया था,, 3 दिन तक कश्मीर में कोई सरकार नहीं थी.

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