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पेसा एक्ट क्या है? जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शहडोल पहुंचकर लागू किया है
पेसा एक्ट क्या है: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Of India Draupadi Murmu) 15 नवंबर को पहली बार मध्य प्रदेश पहुंची। एमपी के शहडोल जिले में उनका हेलीकॉप्टर दोपहर 2 बजे लैंड हुआ. यहां महामहिम बिरसा मुंडा जयंती (Birsa Munda Jayanti) के मौके पर आयोजित जनजातीय गौरव दिवस समारोह में बतौर चीफ गेस्ट के रूप में पहुंची हैं. लालपुर हवाई पट्टी में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.
द्रौपदी मुर्मू ने इस मौके पर पेसा एक्ट (PESA Act) लागू कर दिया है. जिसका मतलब पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार है. इससे अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं को अधिकार देकर आदिवासियों को पावरफुल किया जाएगा। पेसा एक्ट क्या है? इससे क्या लाभ होगा? इसके बारे में हम विस्तार से जानते हैं.
PESA Act क्या है
What Is PESA Act In Hindi: पेसा एक्ट का फुलफॉर्म Panchayat Extension to Scheduled Areas यानी पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार है. जिसे द्रौपदी मुर्मू द्वारा मध्य प्रदेश के आदिवासियों (Tribals Of Madhya Pradesh) के अधिकारों के लिए लागू किया गया है.
पेसा अधिनियम की पूरी जानकारी
PESA Act Full Information: जब भारत का संविधान तैयार किया गया था तब इसमें द्विस्तरीय व्यवस्था की गई थी. पहला संसद और दूसरा विधानसभा। बाद में तीसरी व्यवस्था शुरू की गई जिसे हम पंचायती राज व्यवस्था कहते हैं. मगर यह व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं हो सकती थी.
क्योंकि आदिवासियों और उनके क्षेत्रों की परिस्थियां अन्य शहरी और ग्रमीणों से अलग थीं इसी लिए दिलीप सिंह भूरिया की अद्यक्षता में में कमेटी बनी. जिसके बाद साल 1986 में पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित क्षेत्रों के विस्तार के लिए पेसा कानून की शुरुआत हुई.
पिछली सरकार आदिवासियों के विकास के लिए नहीं सोचती थी
1996 में मध्य प्रदेश पंचायती राज को लागू करने वाला पहला राज्य बना था. 1998 तक इसके सभी कानून बन जाने थे जिनमे आदिवासियों को 15 अधिकार देने थे. मगर पिछली सरकारों ने पेसा एक्ट को लेकर कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। 23 दिसम्बर 1998 को राजपत्र का प्रकाशन हुआ जिसमे 16 बिंदु थे. मगर इन बिंदुओं में 1966 वाले 15 अधिकारीयों में से कोई भी नहीं था.
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी और उन्होंने फिर से पेसा के क्रियान्वयन को शुरू किया। 2003 में जब एमपी में बीजेपी आई तो इसपर काम शुरू हुआ. केंद्र में 2004 से लेकर 2014 तक खूब बहस और चर्चा हुई मगर कांग्रेस ने इसपर कोई काम नहीं किया।
2014 में एमपी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय वर्ग के विकास के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संज्ञान लिया। ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (TAC) में CM की अध्यक्षता में चर्चा हुई 20 से ज्यादा मीटिंग हुईं। 22 सितंबर 2022 को पेसा नियम का ड्राफ्ट आया। ड्राफ्ट में जल, जंगल, जमीन से लेकर संस्कृति संरक्षण के उपबंध बनाए गए, ताकि अधिसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को उनके अधिकार दिए जा सकें।
पेसा एक्ट मतलब जल, जंगल जमीन जमीन
मध्य प्रदेश में 15 नवंबर से PESA Act लागू हो गया है. इस एक्ट का मतलब सिर्फ जल जंगल जमीन है. यह आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए लागू किया गया है.
- अब से अनुसूचित क्षेत्रों में जो ग्राम सभा होगी उसमे पंचायती राज व्यवस्था को क्षेत्र की मिटटी के कटाव, जल संचयन की व्यवथा कृषि विभाग के जरिये करने का अधिकार मिलेगा
- इन क्षेत्रों में भू अभिलेख की ग्राम सभा होगी, जो आदिवासियों को उस वित्तय वर्ष का नक्शा और खसरा देगा। इससे जनजातीय वर्ग के लोगों को तहसील नहीं जाना पड़ेगा। बल्कि पटवारी स्तर में काम निपट जाएगा।
- आदिवासियों की जमीन का लैंडयूज बदला नहीं जा सकेगा। ऐसा करने से पहले जानकारी देनी होगी
- गैर आदिवासी को मिली जमीन वापस लेने का अधिकार होगा, अगर कोई जमीन नीलाम हो रही है तो ग्राम सभा उसे वापस आदिवासी को दिला सकती है
जल
- अबतक जंगल में जलस्त्रोत जैसे नदी, तालाब का अधीकार सिर्फ वन विभाग के पास होता था. पेसा एक्ट के अनुसार अब ग्राम सभा को जल प्रबंधन के अधिकार मिलते हैं
- 0 से 10 हेक्टेयर का तालाब ग्राम पंचायत का होगा, 10 से 100 तक जनपद, 100 से 500 हेक्टेयर जिला पंचायत का होता है.
- अब जंगलों के जल स्त्रोत के मैनेजमेंट, संरक्षण और संवर्धन का काम ग्राम सभाएं करेंगी। 40 हेक्टेयर तक के तालाब के प्रबंधन की व्यवस्था ग्राम सभा करेंगी
- आदिवासी छोटे तालाबों में मछली पालन कर सकते हैं.
जंगल
- ग्रामसभा के पास अब जंगलों में होने वाले अवैध खनन को रोकने का अधिकार होगा, इतना ही नहीं जनजातीय गावों के स्व सहायता समूह जंगल के खनिक के टेंडर में भाग ले सकेंगे।
- जनजातीय अब तेंदूपत्ता का भी टेंडर ले सकेंगे
पेसा एक्ट के लाभ
- जंगलों से आदिवासी पलायन कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें बाहर जाकर मजदूरी करने से बेहतर अपने क्षेत्र में काम मिल जाएगा। जो श्रमिक का काम करते हैं उनका रिकॉर्ड दर्ज होगा। जैसे नाम पता, काम, कौन से ठेकेदार का काम, कितनी मजदूरी मिलती है इत्यादि।
- गावों में न्यूनतम मजदूरी के बोर्ड लगेंगे, कोई भी ठेकेदार इससे कम रकम में किसी जनजातीय से काम नहीं करवा सकेगा। और कोई कम पैसों में काम लेता है तो इसकी शिकायत की जा सकेगी
- शराब की दुकान कहां खुलेगी, कितने में बिकेगी, कितनी बिकेगी इसका फैसला भी ग्राम सभा करेगी