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Leonid Meteor Shower: अगर ये मिस कर दिया तो बहुत पछतावा होगा, इस दिन आसमान में दिखेगा टूटते तारों की बारिश का नज़ारा
Leonid Meteor Shower: आसमान ने जब कोई तारा टूटता दिखाई देता है तो हम सब तुरंत अपनी आंखे बंद कर के कोई विश मांगने लगते हैं। ऐसा मौका बहुत कम देखने को मिलता है, महानगरों की चकाचौंध में अब टिमटिमाते तारों की रौशनी फीकी पड़ जाती है। लेकिन एक ऐसी खगोलिये घटना घटित होने वाली है जिसे देखकर आपकी आंखे चौंधिया जाएंगी। आसमान में तारों की बरसात होने वाली है, वो नज़ारा कुछ ऐसा होने वाला है जिसे देखकर लगेगा जैसे अंतरिक्ष में आतिशबाज़ी हो रही हो।
भारत समेत पूरी दुनिया से इस दिलचस्प और दिलकश नज़ारे को देखा जा सकेगा, उल्का पिंडो की बारिश 17 नवंबर को अपने चरम पर होगी। अगर आपने ये मोमेंट मिस कर दिया तो बाद में बहुत पछतावा होगा, ना जाने ऐसा दोबरा कब होगा।
30 नवंबर तक ऐसा ही माहौल बना रहेगा
पूरे नवंबर के महीने में Leonid Meteor Shower यानी के उल्कापिंडों की बारिश होती रहेगी लेकिन परेशान होने वाली बात नहीं है उल्कापिंड धरती की सतह तक नहीं पहुंच पाएंगे। लेकिन आपको आसमान में एक साथ कई तेज़ी से चलती हुई रोशनियां ज़रूर दिखाई पड़ेगीं। उल्कापिंडों की बारिश का सिलसिला 6 नवंबर से शुरू हुआ है जो 17 नवंबर को अपने पीक में होगा यानी के इस दिन सबसे ज़्यादा उल्कापिंडों को नज़ारा देखने को मिलेगा जबकि यह खगोलीय घटना 30 नवंबर तक होती रहेगी। 17 से 19 नवंबर के बीच का नज़ारा सबसे खास रहने वाला है।
एक घंटे में सैकड़ों तारे टूटते हुए दिखेंगे
सबसे पहले समझने वाली बात ये है की आसमान में जो सितारे टिमटिमाते हुए नज़र आते हैं वो कभी टूटते नहीं है। और जिहने हम टूटते हुए तारे कहते हैं असल में वो कोई तारा नहीं बल्कि उल्का पिंड होता है जो अंतरिक्ष से भटक क्र पृत्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारन धरती की कक्षा में प्रवेश कर जाते हैं। उनकी स्पीड इतनी रहती है कि पृथ्वी की कक्षा में आने के बाद वो शुक्ष्म कणों से टकराने लगते हैं और जलने लगते हैं। और धरती से हम उन्हें देख सकते हैं. वो कोई तारा नहीं रहता है। तारा कभी टूटता नहीं है, तारा सिर्फ फूटता है और उसके बाद ब्लैक होल में बदल जाता है। तो इस महीने आपको एक दिन में एक साथ सैकड़ों उल्कापिंड जलते हुए नज़र आयेगें।
बहुत खूबसूरत नज़ारा होगा
इस खलोगीली घटना के पीछे के विज्ञान को समझने की कोशिश करिये। ये Comet 55P/Tempel-Tuttle से आते हैं. ये कॉमिट सूरज का एक चक्कर लगाने में 33 साल का समय लेते हैं, जो पृथ्वी के करीब से गुजर रहे हैं। अमेरिकी स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन NASA की माने तो, धरती की ओर हर घंटे 15 उल्कापिंड आ सकते हैं। इस दौरन कुछ उल्कापिंडों की रफ़्तार 71 किलोमीटर प्रति सेकेंड हो सकती है। जलते हुए उल्का पिंड बेहद चमकदार होते हैं इसी लिए पृथ्वी से नज़ारा ऐसा लगेगा जैसे आतिशबाज़ी हो रही हो।