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जानिए कबूतर की उस क्षमता के बारे में जिससे लेटर पहुंचाने में होते हैं सफल, कैसे काम करता है इनका GPS सिस्टम
शांति और स्वतंत्रता का प्रतीक कबूतर (pigeon) को हम एक खूबसूरत पक्षी के रूप में जानते हैं। फिल्मों और टीवी सीरियल में कबूतरों को संदेश पहुंचाने के लिए उपयोग करते हुए प्रदर्शित किया गया है। कबूतर का नाम सुनकर हमारे मन में एक फिल्मी गीत जरूर याद आता है और वह है "कबूतर जा जा" इस गीत में भी कबूतर को खत पहुंचाते हुए ही दिखाया गया है। क्या आपके मन में यह सवाल उठा है कि कबूतर ही क्यों संदेश पहुंचाने के लिए तोता या चील का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता था? आज हम आपको बताएंगे इसके पीछे की वजह और कबूतर के उस GPS सिस्टम के बारे में जिसकी सहायता से कबूतर यह करिश्मा कर पाते हैं।
जब मोबाइल फोन और टेक्नोलॉजी का विकास नहीं हुआ था और व्हाट्सएप और मेटा जैसे आधुनिक तकनीक नहीं थी तब लोगों को कबूतर ही एक मैसेंजर के रूप में कार्य करता था। कबूतर किसी एक जगह पर अपने घर बनाते हैं और कबूतर में अनोखी रास्ता खोजने की क्षमता है जिससे वह कभी भी और कहीं भी चलें जाए परंतु अपना घर/रास्ता ढूंढ ही लेते हैं।
कबूतर संदेश पहुंचाने का काम हजारों वर्षों से करते आ रहे हैं, एक शोध के अनुसार लगभग 2000 वर्ष पूर्व सुरक्षित संचार के स्रोत के रूप में कबूतरों का उपयोग किया जाता था। यह भी बताया जाता है कि जुलियस सीजर ने गॉल कि अपनी विजय का संदेश कबूतरों के माध्यम से ही रोम भेजा था।
यह है कबूतरों का जीपीएस सिस्टम
कबूतरों के इस क्षमता के दो मुख्यधारा के सिद्धांत हैं, जिनकी मदद से वे कभी भी रास्ता नहीं भटकते। प्रथम है दृष्टि आधारित सिद्धांत, यह कहता है कि कबूतरों के लिए रेटीना में 'क्रिप्टोक्रोम' नामक प्रोटीन होता है यह क्रिप्टोक्रोम पक्षियों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को देखने की क्षमता प्रदान करता है। दूसरा सिद्धांत उनके भीतर मौजूद चुंबकीय क्षमता पर आधारित है, जिससे उन्हें शायद चुंबकीय कण-आधारित दिशा ज्ञान प्राप्त होता है। चुंबकीय कण प्रकृति में मैग्नेटोटैक्टिक बैक्टीरिया नामक बैक्टीरिया के एक समूह में पाए जाते हैं। ये बैक्टीरिया चुंबकीय कण उत्पन्न करते हैं और स्वयं को पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ जोड़े रखते हैं।