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पावागढ़ कालिका मंदिर का इतिहास: आक्रांता महमूद बेगड़ा ने मंदिर तोड़ बनवाई थी सदनशाह दरगाह, 500 साल बाद लहराया भगवा

पावागढ़ कालिका मंदिर का इतिहास: आक्रांता महमूद बेगड़ा ने मंदिर तोड़ बनवाई थी सदनशाह दरगाह, 500 साल बाद लहराया भगवा
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Pavagadh Kalika Mandir Ka Itihas: ऐसा कहा जाता है पावागढ़ कलिका मां मंदिर तोड़ने वाला सुल्तान इतना ज़हरीला था कि उसके थूकने से दुश्मन की मौत हो जाती थी

पावागढ़ कलिका मंदिर का इतिहास: 500 साल बाद गुजरात के पावागढ़ में 11 वीं सदी से मौजूद मां कलिका मंदिर में दोबारा से भगवा लहराया है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून 2022 के दिन मां कलिका के मंदिर में भगवा ध्वज फहराया। पूरे सनातन वर्ष के लिए यह बहुत गौरवपूर्ण दिन रहा जब सनातनियों को वापस से उनका प्राचीन मंदिर वापस मिला।


पावागढ़ और यहां स्थापित मां कालिका माई मंदिर का इतिहास बहुत जहरीला रहा है, क्योंकि 15 वीं सदी में इस क्षेत्र में राज करने वाला क्रूर मुग़लियां सुल्तान मेहमूद बेगड़ा भी जहरीला था. ऐसा कहा जाता है कि मेहमूद बेगड़ा के थूंक में भी इतना जहर था कि मात्र उसके थूंकने से सामने वाले की मौत हो जाती थी. आज हम आपको आक्रांता मेहमूद बेगड़ा और उसके द्वारा नष्ट किए गए मां कालिका मंदिर का इतिहास बताने वाले हैं.

मेहमूद बेगड़ा कौन था


Who was Mehmood Begda: मेहमूद बेगड़ा गुजरात का छठा मुग़लिया सुल्तान था, उसका असली नाम अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम था. जब वो सिर्फ 13 साल का था उसने गुजरात की गद्दी संभाल ली थी. सन 1459 से लेकर 1511 तक मतलब 52 साल उसने गुजरात में राज किया और इस दौरान गुजरात की जनता पर हर दिन हर पल कहर बरपाता रहा.

मेहमूद बेगड़ा की कहानी

Story of Mehmood Begada: मेहमूद बेगड़ा सबसे राक्षस प्रवित्ति का इस्लाममिक आक्रांता था, वह खाना भी खाता था तो दूसरों को देखकर घिन आ जाती थी, वह अपने राक्षसी भोजन के लिए कुख्यात था.

कट्टर इस्लामिक मेहमूद बेगड़ा का भी वही लक्ष्य था जो भारत में आए हर इस्लामिक आक्रमणकारियों का था 'गजवा-ए-हिन्द' मतलब हिंदुस्तान का इस्लामीकरण। जो हिन्दू राजा उससे हार जाता था वो उसे इस्लाम कबूल करवाता और विरोध करने पर उन्हें बेरहमी से मार डालता था.

मेहमूद बेगड़ा एक जहरीला सुल्तान था

History Of Mehmood Begada In Hindi: मेहमूद बेगड़ा एक अति विषैला राक्षसी सुल्तान था, पुर्तगाली यात्री 'बाबोसा' ने उस वक़्त गुजरात का भ्रमण किया था जब बेगड़ा का गुजरात में शासन था. बाबोसा ने एक किताब लिखी 'द बुक ऑफ़ ड्यूरेटे बाबोसा वॉल्यूम 1' ('The Book of Durette Babosa Volume 1') उस किताब में बाबोसा ने लिखा कि "बेगड़ा को बचपन से ही जहर पिलाने की आदत डाली गई थी' क्योंकि उसके पिता चाहते थे कि मेहमूद बेगड़ा का शरीर विष को अपना ले और उसे कोई जहर देकर ना मार सके"


खाने के साथ ही उसे जहर दिया जाता था, रोजाना जहर की खुराख मिलने से मेहमूद बेगड़ा का शरीर जहरीला हो गया था. किताब में लिखा है कि मेहमूद बेगड़ा जहां बैठता था वहां सिर्फ उसके होने से मक्खियां मर जाती थीं. जिन महिलाओं के साथ वो संबंध बनाता था वो बाद में मर जाती थीं.


इटालियन यात्री 'लुडोविको डी वर्थमा' (Ludovico de Varthama) ने अपनी किताब 'इटिनेरारियो डी लुडोइको डी वर्थेमा बोलोग्नीज' (Itinerario de Ludoico de Worthema Bolognese) में लिखा है कि जब उसे किसी को जान से मारना होता था तो वह अपने दुश्मन के कपडे उतरवाकर पान चबाता था और उस शख्स पर थूंक देता था. जिसके बाद सामने वाले की कुछ देर में मौत हो जाती थी.

राक्षसों की तरह खाना खाता था

मेहमूद बेगड़ा की दाढ़ी और मूछ रेशमी और काफी बड़ी थीं, इतनी बड़ी थी के उन्हें घुमाकर पगड़ी बना लेता था, कहा जाता है कि उसकी दाढ़ी कमर ने नीचे आती थी, जिन लोगों की दाढ़ी लम्बी होती थी वो उन्हें काफी तवज्जो देता था. मेहमूद बेगड़ा हर दिन 35 किलो खाना खाता था. वो मिठाई, शहद, मक्खन, मांस, 12 दर्जन केले खा जाता था.

पावागढ़ महाकाली मंदिर का इतिहास

History of Pavagadh Mahakali Temple: यह बात 11 वीं सदी की है, गुजरात के पावागढ़ में हिन्दू राजाओं ने एक पहाड़ की चोटी पर विशाल महाकाली मंदिर का निर्माण कराया था. ऐसी कहानियां हैं कि पावागढ़ में ही भगवान श्री राम के पुत्रों लव-कुश को मोक्ष प्राप्त हुआ था. और यहीं ऋषि विश्वामित्र ने माता काली की कठोर तपस्या की थी.

सन 1472 में जब मेहमूद बेगड़ा की नज़र पावागढ़ कलिका मंदिर पर पड़ी तो उसने तुंरत मंदिर तोड़ यहां इस्लामिक ढांचा तैयार करने का फरमान सुनाया। मतलब आज से 500 साल पहले मेहम्मूद बेगड़ा ने हिन्दू मंदिर को नष्ट कर दिया था. पावागढ़ कालिका मंदिर को तोड़कर उसने मंदिर के शिखर पर इस्लामिक गुंबद बनाकर उसे सदनशाह दरगाह नाम दिया था. मेहमूद बेगड़ा के मरने के बाद 15 वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था लेकिन अबतक उस मंदिर को सदनशाह दरगाह के नाम से ही जाना जाता था.

500 साल बाद लहराया भगवा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से मां कालिका मंदिर को दोबारा से रिनोवेट किया गया, मंदिर का पुनर्निर्माण में 120 करोड़ रुपए खर्च हुए. दरगाह को मंदिर के पास ही शिफ्ट कर दिया गया और मूल शिखर पर मंदिर का निर्माण हुआ. अब कलिका मां का मंदिर पावागढ़ के पहाड़ में 30 हज़ार वर्गफीट में फैला है. 18 जून 2022 के दिन पावागढ़ कलिका मंदिर में प्रधानमंत्री के हाथों सनातनी ध्वज फहराते हुए मंदिर का उद्घाटन किया गया.

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