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कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास: मुग़लिया आक्रांताओं ने तीन बार भगवान का मंदिर तोडा, फिर मस्जिद बनवा दी
मथुरा कृष्ण जन्मभूमि का असली इतिहास: आज से दसियों हज़ार साल पहले जब दुनिया में असभ्य बर्बर युग चल रहा था उससे भी कई हज़ार साल पहले से अखंड भारत में सनातन सभ्यता का वजूद था, जब बाकि दुनिया के 'बारबेरियन' इशारों में बात करना सीखे थे तब भारत में 'वेद-पुराण' लिखे जाते थे, भारत की संस्कृति और सभ्यता बाकि दुनिया से सैकंडों साल आगे थी, गणित, खगोल विज्ञान, तकनीक, विज्ञान, इंसानियत और धर्म के मामले में हम सब से आगे थे। सब कुछ सही चल रहा था तभी भारत में विदेशी आक्रांताओं का आना हुआ और जाहिल आक्रांताओं ने हमारी सभ्यता को तबाह करना शुरू कर दिया।
कृष्ण जन्मभूमि विवाद का असली सच
Real History Of Krishna Birthplace: द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा का इतिहास बड़ा ही भयावह रहा है। इस मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने 3 बार तोडा और 4 बार इसका निर्माण हुआ, जिस जगह पर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है वहां आज से 5 हज़ार साल पहले 'कसं' का कारागार हुआ करता था, वहीं कान्हा का जन्म हुआ था। कंस के बाद मथुरा पर राजा उग्रसेन ने राज किया, जहां कारागार था वहां मुग़ल इस्मालिम आक्रांता ने मस्जिद बनवा दी थी.
सबसे पहले कृष्ण जन्मभूमि मंदिर किसने बनवाया था
Krishna JanmBhumi Ka Itihas: कसं के कारागार के पास सबसे पहले भगवन कृष्ण का मंदिर (केशवदेव) उनके प्रपोत्र 'ब्रजनाब' ने बनवाया था, श्री कृष्ण के वह पर पोते थे और भगवान उनके कुल देवता थे। यहां पर मिले शिलालेखों में 'ब्राह्मी लिपि' लिखी हुई पाई गई है, जिससे ये साबित होता है कि यहां शोडास के राज्य काल में 'वसु' नामक व्यक्ति ने जन्मभूमि पर एक मंदिर और उनके तोरण द्वार सहित वेदिका का निर्माण कराया था।
सम्राट विक्रमादित्य ने बनवाया था विशाल मंदिर
400 इसा पूर्व (400BC) में सम्राट 'विक्रमादित्य' ने जन्मभूमि में बने मंदिर को विशाल आकार दिया था, उस वक़्त मथुरा संस्कृति और कला का एक बड़ा केंद्र था इस दौरन यहां सनातन धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हो रहा था। विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए विशाल मंदिर का ज़िक्र चीनी यात्री 'फाह्यान और ह्वेनसांग' ने भी किया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मेगस्थनीज ने मथुरा को मेथोरा नाम नाम से संबोधित करके इसका उल्लेख किया है। 180 ईसा पूर्व और 100 ईसा पूर्व के बीच कुछ समय के लिए मथुरा पर ग्रीक के शासकों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में नियंत्रण बनाया रखा। यवनराज्य शिलालेख के अनुसार 70 ईसा पूर्व तक यह निरयंत्रण बना रहा। फिर इस पर सिथियन लोगों ने शासन किया। फिर राजा विक्रमादित्य के बाद यह क्षेत्र कुशाण और हूणों के शासन में रहा। राजा हर्षवर्धन के शासन तक यह शहर सुरक्षित रहा।
जब आया महमूद गजनवी
History Of Mathura Temple In Hindi: ईस्वी सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे, लेकिन उसके लौटते ही दोबारा से मंदिर बन गए। मथुरा के मंदिरों के टूटने और बनने का सिलसिला भी कई बार चला। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
फिर इतना विशाल मंदिर बना की आगरा से नज़र आता था
मथुरा मंदिर का इतिहास: 'सिकंदर लोदी' द्वारा मंदिर तोड़ने के बाद ओरछा के शासक "राजा वीर सिंह बुंदेला" ने खंडहर बन चुके मंदिर को विशाल आकार दिया। कहा जाता है कि यह मंदिर इतना विशाल था कि आगरा से दिखाई पड़ता था लेकिन उस मंदिर की नज़र में इस्लामिक जाहिल आक्रांतों पर पड़ गई।
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनवा दी
Shri Krishna Janmbhumi ka Asli Itihas: सन 1669 में जब क्रूर मुग़ल शासक 'औरंगजेब' का आना हुआ तो उसे मंदिर की भव्यता और भारत की संस्कृति देखि ना गई, उसने एक कतार से देश के विशाल प्राचीन वास्तुकला विज्ञान का इस्तेमाल किए हुए मंदिरों को तोडना शुरू कर दिया, उनमे से एक कृष्ण मंदिर भी था। औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ कर उसमे एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया, यहां पर मिले अवशेषों से यह पता चलता है कि मंदिर के चारों ओर विशाल ऊंची दिवार का परकोट मौजूद था।
तब हुई श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना
ब्रिटिश शासनकाल में सन 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा 'पटनीमल' ने इस जगह को खरीद लिया। वर्ष 1940 में जब यहां 'पंडित मदन मोहन मालवीय' आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए। इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति 'जुगलकिशोर बिड़ला' मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।
1982 में हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण किसने कराया था: श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दी थी, जिसका फैसला 1953 में आया, इसके बाद ही यहां निर्माण शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
'चाहे खिलजी हों या मुग़ल इन सब का एक ही मकसद था ' गज़वा ए हिन्द' सीधा शब्दों में कहें तो हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन कर उन्हें इस्लाम कबूल करवाओ, मंदिर तोड़ो, पुराण-वेदों को निस्तेनाबूत कर दो और भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र बना दो, कश्मीर का सूर्य मंदिर हो या गुजरात का सोमनाथ मंदिर, बनारस का काशीविश्वनाथ मंदिर हो या अयोध्या में भगवान राम की जन्म भूमि इन जाहिल आतंकियों ने मंदिरों को लूटा और उनमे मस्जिद बनवा दी।
कृष्ण जन्मभूमि में बने मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने 3 बार तोडा और इसका पुनर्निर्माणa 4 बार हुआ, फिलाहल मंदिर के बगल में बनी शाही मस्जिद और मंदिर की जमीन का मामला न्यायालय में है।