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हिन्दू-मुसलमान और ईसाई का तो पता है लेकिन जैन और पारसी धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है
funeral Of Jainism and Zoroastrianism: जब हिन्दू धर्म में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार चिता जला कर किया जाता है और किसी छोटे बच्चे की मौत होती है तो कभी-कभी हिन्दू रीति रिवाजों के साथ उसे दफनाया भी जाता है, वहीं इस्लाम और ईसाई मजहब में भी मरने वाले को दफनाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है जैन और पारसी धर्म के लोग कैसे अंतिम संस्कार करते हैं. जैन और पारसी धर्म के लोगो का फ्यूनरल बाकियों से काफी अलग रहता है।
पारसी कैसे अंतिम संस्कार करते हैं (funeral Of Zoroastrianism)
पारसी धर्म के लोगों का अंतिम संस्कार अन्य धर्म के लोगों से काफी जुदा रहता है, जब कोई पारसी धर्म को मानने वाले की मौत होती है तो उनके घर वाले और समाज मृतक के शरीर को आसमान के हवाले कर देते हैं। इस धर्म के लोग मरने वाले के शरीर को ना तो दफनाते हैं और ना ही चिता जलाते हैं बल्कि 'टॉवर ऑफ़ साइलेंस' नाम के एक स्थान में शव को छोड़ देते हैं. जिसे दखमा भी कहा जाता है। पिछले 3 हज़ार साल से पारसी धर्म के लोग "दोखमेनशिनी" नाम से अपनी परंपरा को निभा रहे हैं.
क्या है टॉवर ऑफ़ साइलेंस
जिस जगह में पारसी लोग मृतक का अंतिम संस्कार करते हैं उसे टॉवर ऑफ़ साइलेंस कहा जाता है, यह एक गोलाकार स्ट्रक्चर होता है जिसकी चोटी में शव को खुले आसमान के लिए रख दिया जाता है। जिसके बाद पक्षी उस शव को नोच-नोच कर खा जाते हैं। पारसी धर्म का पालन करने वाले लोग, जल, अग्नि, भूमि को पवित्र माना जाता है इसी लिए वो मृतक को जलाते या दफनाते नहीं है। उनका कहना है कि किसी को जलाने से अग्नि अपवित्र हो जाती है, और दफ़नाने से जमीन और पानी में बहा देने से जल अपवित्र होता है। उनका मानना है कि मरने के बाद शव गिद्ध और अन्य पक्षियों के लिए भोजन बन जाता है।
जैन धर्म के लोग कैसे अंतिम संस्कार करते हैं (funeral Of Jainism)
जैन धर्म ऐसा है जहां किसी के मरने से पहले भी अंतिम संस्कार किया जाता है, जिसमे 'संलेखना' नामक उपवास होता है, ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म के लोग खुद अपनी मृत्यु का निश्चय करते हैं. और उपवास रख कर मोक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। इस धर्म के लोग खाना-पीना छोड़ देते हैं जबतक भूख-प्यास से उनकी मौत ना हो जाए. हालांकि भारतीय कानून ने इस प्रथा को आत्महत्या घोषित कर दिया था, लेकिन जैन धर्म के गुरु ऐसे ही मृत्यु की प्राप्ति करते हैं, जैन धर्म के लोग समाधी मुद्रा में चिता भी जलाई जाती है।