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एमपी के छतरपुर में बच्चों के स्कूल बैग को तकिया बनाकर आराम फरमाते शिक्षक का वीडियो वायरल, डीईओ ने दिए यह आदेश
मध्यप्रदेश की कुछ सरकारी स्कूलों का हाल बेहाल है। कहीं शिक्षक स्कूल से गायब रहते हैं तो कुछ स्कूलों में शिक्षक पहुंचते तो हैं किंतु उसे आरामगाह बना लेते हैं। इसका असर स्कूल में पढ़ाई करने के लिए पहुंचने वाले बच्चों पर पड़ता है। ऐसा ही एक मामला एमपी के छतरपुर जिले का प्रकाश में आया है जहां शिक्षक स्कूल तो पहुंचे किंतु पढ़ाई कराने की बजाय वह बच्चों के बैग को तकिया बनाकर आराम फरमाते नजर आए। इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। मामले की जानकारी लगते ही डीईओ ने जांच के आदेश जारी किए हैं।
बैग को बनाया तकिया, टाट पर लेट गए
एमपी के छतरपुर जिले के लवकुशनगर क्षेत्र की एक प्राथमिक शाला का वीडियो सामने आया है जिसमें प्रधानाध्यापक बच्चों के स्कूल बैग को तकिया बनाकर सोते हुए नजर आ रहे हैं। प्राथमिक शाला बजौरा के प्रधानाध्यापक राजेश कुमार अरजरिया एक बच्चे के स्कूल बैग को तकिया बनाकर आराम से टाट पर लेट जाते हैं। वहीं बच्चे भी कक्षा से लापता हैं। विद्यालय की अन्य कक्षाओं के बच्चे भी शाला के बाहर शोरगुल मचाते हुए खेलने में मशगूल हैं। स्कूल में प्रधानाध्यापक के सोने का किसी ने वीडियो बना लिया जो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
डीईओ ने दिए जांच के निर्देश
मामले को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी एमके कौटार्य का कहना है कि लवकुश नगर क्षेत्र के प्राथमिक शाला बजौरा में शिक्षक के सोने का वीडियो प्रकाश में आया है। जिसकी जांच के लिए संकुल प्राचार्य और विकासखंड शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए गए हैं। उनका कहना है कि संबंधित शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। किसी भी शिक्षक को विद्यालय में सोना नहीं चाहिए। वह लगातार शिक्षकों को समय पर स्कूल पहुंचने और निर्धारित समय तक अध्यापन कार्य करने के भी निर्देश दे रहे हैं।
खानापूर्ति के लिए पहुंचते हैं विद्यालय
ग्रामीणों का कहना है कि कलेकटर सहित शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी लगातार ग्रामीण अंचलों की शालाओं का औचक निरीक्षण कर शिक्षण कार्य को ठीक ढंग से करने के निर्देश दे रहे हैं किंतु उनके गांव की शाला के शिक्षकों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। शिक्षक विद्यालय केवल खानापूर्ति के लिए पहुंचते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक विद्यालय आने के बाद अधिकांश शिक्षक या तो इसी तरह आराम फरमाते हैं या फिर मोबाइल में व्यस्त देखे जाते हैं। गांव की शाला में पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा का स्तर भी निम्न है उनको मामूली से सवालों के जवाब भी नहीं आते हैं।