माओवादियो का छत्तीसगढ़ में इतिहास से स्कूली बच्चों को कराया गया रूबरू
दोरनापाल। धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के बच्चों के कदम नहीं भटके। कहीं नक्सलियों की बातों में आकर वो गलत राह पर न चल पड़ें। इसे देखते हुए गुरुवार को नक्सल प्रभावित बच्चों के एर्राबोर स्थित स्कूल में जवान उनसे मिलने पहुंचे। इस स्कूल में अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र के करीब एक हजार बच्चे पढ़ते हैं। जवानों ने प्रवीणता सूची में आए बच्चों को शैक्षणिक सामाग्री बांटी। साथ ही छत्तीसगढ़ में माओवादियों के इतिहास के बारे में भी उन्हें जानकारी दी।
आईजी विवेकानंद सिन्हा, डीआईजी रतन लाल डांगी और एसपी अभिषेक मीणा के मार्गदर्शन में चल रहे तेदमुंता बस्तर अभियान में छात्र जागृति पहल के तहत दोरनापाल कोंटा मार्ग पर स्थित ग्राम एर्राबोर के स्कूल में जवानों ने बच्चों के साथ बात की। जवानों का मानना है कि शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में ही छात्रों को नक्सलवाद के खिलाफ जागरूक किया जाना जरूरी है। एर्राबोर में अति नक्सल प्रभावित ग्राम के कक्षा 1 से 12 तक के लगभग 1000 बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। जवानों ने बच्चों को छत्तीसगढ़ में माओवादियों का इतिहास बताया। उन्होंने बताया कि कैसे 1980 के आसपास माओवादी आए। यहां की जनता को झूठ और आतंक के सहारे अपने अधीन कर लिया। इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे अतिसंवेदनशील गांवों मनिकोंटा, गगनपल्ली, टेट्राई, तोलनाई, मेड़वाही, मरईगुड़ा, मोसेलमड़गु, कोलाइगुड़ा, लेन्द्रा, कोंगडम से आते हैं। इससे पहले नक्सली हमलों में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी गई।
प्रवीणता सूची में आए बच्चों को बांटी शैक्षणिक सामाग्री
- बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने और उनको प्रेरित करने के लिए जवानों ने कक्षा 1 से कक्षा 11 तक प्रवीणता सूची में अाए छात्रों को पुरस्कार स्वरूप स्कूल बैग और अन्य सामाग्री दी। साथ ही बेहतर भविष्य निर्माण हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया। इस दौरान बच्चों ने बताया कि हाई स्कूल में शिक्षक की कमी है। इसके साथ ही उन्हें जाति प्रमाण पत्र बनाने में भी अड़चनें आ रही हैं। इस पर जवानों ने उसे कलेक्टर के माध्यम से जल्द ही दूर करने का आश्वासन दिया।