पीपल की पूजा क्यों होती है? इसके बारे में जानकर रह जाएंगे हैरान, जानिए!
अक्सर सोमवती अमावश्या के दिन महिलाएं पीपल के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही इस दिन 108 बार परीक्रमा करने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं हर शनिवार के दिन पीपल की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। जिसकी कुंडली में शनि की साढ़े साती या शनि से सम्बंधित कोई भी दोष होता है उसे शनिवार के दिन पीपल की पूजा करनी चाहिए।
पीपल में सभी देवताआें का होता है वास
हमारे पुराणों में बताया गया है कि पीपल में सभी देवताओं का वास होता है। श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वह वृक्षों में पीपल हैं। ऐसे में पीपल को भगवान श्री नारायण का स्वरूप माना जाता है इसलिए भी पीपल पूज्यनीय वृक्ष है। कहा गया है कि अगर पीपल में जल चढ़ा दिया जाता है तो सभी देवी देवताओं को जल प्राप्त हो जाता है।
क्या है कथा
कहा जाता है कि पिप्लादि ऋषि का जन्म पीपल के पेड़ के नीचे हुआ था। वह जन्म से ही अनाथ थे। एक बार उन्हे जंगल में नारद मिले। जिसके बाद उन्हे पता चला कि वह शनि की महादशा के कारण उनकी यह हालत हुई है। इस पर पिप्पलादि ने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर घोर तपस्या की और ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मदेव ने पिप्लादि से वर मागने के लिए कहा। जिस पर पिप्लादि ने ब्रह्मदंड मांगा। कहा जाता है कि ब्रह्मदंड मिलने पर पिप्लादि ने पीपल पर बैठे शनिदेव पर प्रहार कर दिया। जिससे शनिदेव का पैर टूट गया।
पिप्पलादि से भयभीत शनिदेव शिवजी के पास पहुंचे। उन्हे सारी बात बताई। जिस पर भगवान भोलेनाथ पिप्लादि के पास पहुंचे। उन्हे शांत करवाया और वर मागने के लिए कहा। जिस पिप्पलादि ने कहा कि आप हमें ऐसा वर दीजिए कि 5 वर्ष के उम्र के बच्चों पर शनि का प्रभाव न रहे। और पीपी की पूजा करने वाले को शनि का प्रकोप नहीं झेलना पड़ता। इसके बाद से शनिदेव की बुरी छाया छोटे बच्चों पर नहीं पड़ती है। साथ ही पीपल की पूजा करने वाले पर शानि देव कोप नही करते।
वहीं एक कथा और है
एक बार कैटभ नामक राक्षस पीपल का रूप बनाकर यज्ञ नष्ट कर देता था। वही जब कोई समिधा के लिए पीपल लेने जाता तो उसे खा जाता था। सभी ऋषि हैरान होने लेगे कि आखिर पीपल में ऐसा क्या है कि जो जाता है वापस नही आता। इसके बाद ऋषियों ने शनिदेव से सहायता मागी। शनिदेव जब पीपल के पेड़ के पास गये तो कैटभ ने उन पर भी आक्रमण किया। कहा जाता है कि कैटभ और शनिदेव में भीषण युद्ध हुआ। शनिदेव ने कैटभ का वध कर दिया। इसके बाद शनिदेव ने ऋषियों से कहा कि अब आप निर्भय होकर यज्ञ करें। तभी से पीपल का महत्व और बढ़ गया और लोग पीपल की पूजा करने लगे।
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