Story Of Mohan Singh Oberoi: मोहन सिंह ओबेरॉय की कहानी, घर से 25 रुपए लेकर निकले और देश की दूसरी सबसे बड़ी होटल चेन बना दी
Mohan Singh Oberoi Success Story In Hindi: जिंदगी में सफल होने से पहले कई बार असफल होना पड़ता है. लेकिन सक्सेस पाने के लिए जिगर में दम और फेलियर का सामना करने की क्षमता होनी चाहिए। इंसान को कुछ कर दिखाने के लिए मजबूत दृढनिश्चय और साफ़ विजन होना जरूरी है ठीक वैसे ही जैसे ओबेरॉय होटल एंड रिसॉर्ट्स के फाउंडर एंड चेयरमैन (Founder and Chairman, Oberoi Hotels & Resorts) मोहन सिंह ओबेरॉय (Mohan Singh Oberoi) के पास था.
आज हम आपको उस इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बचपने में ही दुखों का पहाड़ टूट गया था, लेकिन उन्होंने अपनी मुसीबतों का सामना किया, हारे लेकिन कभी हार नहीं मानी उस दुःख के पहाड़ को लांघकर सफलता की ऊंचाई तक पहुंच गए और 25 रुपए से बिज़नेस शुरू कर भारत की दूसरी सबसे बड़ी होटल चैन खड़ी कर दी जिसे हम Oberoi Hotals के नाम से जानते हैं.
मोहन सिंह ओबेरॉय की सफलता की कहानी
राय बहादुर मोहन सिंह ओबेरॉय (Rai Bahadur Mohan Singh Oberoi) भारत की दूसरी सबसे बड़ी होटल चैन के संस्थापक थे. जब उन्होंने बड़ा करने का सपना देखा था तभी से उनके रास्ते में बड़ी-बड़ी बाधाएं आनी शुरू हो गई थी. बचपन में जिस बच्चे के सिर से पिता का हाथ उठ जाए उसका भविष्य अंधकार में डूब जाता है. मगर माँ के दिए 25 रुपए से मोहन सिंह इतना चमके कि उनकी पीडियों की जिंगदी चमकने लगी
कौन थे मोहन सिंह ओबेरॉय
Who Was Mohan Singh Oberoi: एमएस ओबेरॉय का जन्म पाकिस्तान के झेलम डिस्ट्रिक में एक सिख परिवार में हुआ था. जब मोहन सिंह ओबेरॉय सिर्फ 6 महीने के थे उनके पिता का देहांत हो गया था. परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनकी मां के कंधो में टिकी थी. उस वक़्त मोहन सिंह की मां के पास ऐसा कोई साधन नहीं था कि वह अपने बच्चों को पाल सके. फिर भी उन्होंने किसी तरह मोहन सिंह को स्कूल में दाखिला दिलवाया। बाद में मोहन सिंह जब थोड़ा बड़े हुए तो पढ़ाई छोड़कर 1918 में लाहौर में अपने चाचा की जूते बनाने वाली फैक्ट्री में मैनेजर का काम करने लगे
मगर अमृतसर में हुए दंगो के बाद उस जूता फैक्ट्री का कारोबार ठप्प हो गया, इसी दौरान मोहन सिंह ओबेरॉय ने इशरान देवी से शादी भी रचा ली थी. शादी के बाद वह अपनी पत्नी के भाई के घर सरगोंदा (पाकिस्तान) में रहने लगे. नौकरी की तलाश में दर-दर भटकते रहे मगर कहीं से भी उम्मीद की किरण नज़र नहीं आ रही थी.
मोहन सिंह ओबेरॉय की कहानी
Story Of Mohan Singh Oberoi:जॉब मिली नहीं तो मोहन सिंह ओबेरॉय अपनी पत्नी को लेकर वापस गांव लौट आए, उन्हें अब अपनी बूढी मां का ख्याल रखना था, मगर उनकी माँ ने उन्हें वापस अपनी पत्नी के भाई के घर लौट जाने के लिए कहा और जाते-जाते उन्हें 25 रुपए दिए.
होटल में 50 रुपए की नौकरी शुरू की
इस बीच वह 4 साल तक बेरोगजार रहे, और फ्लेग फैलने के बाद उन्हें पाकिस्तान छोड़कर शिमला आना पड़ा. यहां उन्हें सेसिल होटल (Cecil Hotel) में कर्क की नौकरी मिली जहां उनकी सैलरी सिर्फ 50 रुपए प्रति माह थी.
1934 में एमएस ओबेरॉय ने अपनी पूरी जमा-पूंजी और अपनी के गहनों को गिरवी रखकर अपने गुरु से पहली समपत्ति खरीदी, उन्होंने Clarkes Hotel को खरीदा और अगले 5 साल में पूरा कर्ज उतारने का वादा किया। होटल का काम ठीक-ठाक चलने लगा और बाद में उन्होंने कलकत्ता में पाँच सौ कमरों वाले ग्रांड होटल के संचालन को लेने के लिए एक लीज पेपर में हस्ताक्षर किए, जो हैजा की महामारी के बाद बिक्री पर था। इसके बाद मोहन ओबेरॉय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए और दिन-रात मेहनत करने के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी होटल चैन शुरू कर दी.
आज ओबेरॉय होटल चैन में 12,000 से ज़्यादा कर्मचारी और देश में 31 लक्सरी होटल्स के साथ 5 देशों में लक्सरी क्रूजर्स और होटल एंड रिसोर्ट के अलावा ट्राइडेंट ब्रांड है.
होटल्स के जनक कहे जाते हैं मोहन सिंह ओबेरॉय
The father of the hotel industry: पूरा देश मोहन ओबेरॉय को फादर ऑफ़ होटल इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया के नाम से जनता है. जिन्होंने देश के दूसरे सबसे बड़े होटल चेन की नींव डाली।
अंग्रेजों ने भी सम्मानित किया
1943 में एमएस सिंह ओबेरॉय को राय बहादुर का टाइटल मिला, जो ब्रिटिश सरकार ने दिया। American Society of Travel Agents (ASTA) से उन्हें Hall of Fame से सम्मानित किया गया, International Hotel Association (IHA) ने उन्हें Man of The World अवार्ड दिया। बाद में भारत सरकार ने मोहन सिंह ओबेरॉय को पद्मभूषण से सम्मानित किया।
साल 2002 की 3 मई के दिन फादर ऑफ़ होटल इंडस्ट्री ने अंतिम सांसे लीं, मगर अपने खड़े किए होटल एम्पायर से वह अमर हो गए.