Mushroom Farming Training: पहले करती थी IT Job, फिर मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेकर कमा रही 1.5 करोड़ रुपये, जानिए कैसे?
मनी
Mushroom Farming Training: आईटी (आईटी) की नौकरी छोड़कर एक महिला ने घर में मशरूम की खेती शुरू की और आज वह प्रति वर्ष एक करोड़ से ज्यादा की कमाई कर रही है। इतना ही नही वह इस प्रोफेसनल से कई महिलाओं को रोजगार भी दे रही है।
दरअसल वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के बाद भयंकर तबाही मची थी। इस तबाही को देखने के बाद देहरादून के चारबा गांव की रहने वाली हिरेशा वर्मा दिल्ली की आईटी कंपनी की नौकरी छोड़कर आपदा पीड़ित लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ी। वह दिल्ली छोड़ कर उत्तराखंड पहुंच गईं और एक एनजीओ के साथ काम शुरू कर दिया। इस आपदा में बेघर परेशान महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हिरेशा वर्मा ने मशरूम की खेती करने का फैसला किया।
बंद कमरे में शुरू की मशरूम की खेती
हिरेशा कहती हैं कि पूरे उत्तराखंड का जो मौसम है उसमें पारंपरिक खेती नहीं की जा सकती है। मशरूम की फसल को बंद कमरे में भी तैयार किया जा सकता है और इसमें ज्यादा लागत भी नहीं थी। ऐसे में उन्होंने इन बेसहारा महिलाओं से बात कर उनके खाली घरों में आर्गेनिक तरीके से मशरूम की खेती करानी शुरू कर दी।
2013 में उन्होंने सर्वेंट क्वार्टर में ऑयस्टर के साथ 25 बैग के साथ मशरूम की खेती शुरू की. इस दौरान उन्होने 2000 रुपये की लागत लगाई और लगभग 5000 रूपये मुनाफा कमाया। इससे उत्साहित हिरेशा ने कृषि विज्ञान केंद्र, देहरादून बकायदे मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया। हिरेशा कहती हैं कि आज इसी मशरूम की खेती से वे 1.5 करोड़ रुपये का सलाना मुनाफा कमा रही हैं।
ऐसे मिल रही सफलता
हिरेशा ने अपने गांव चारबा, लंगा रोड, देहरादून में प्रायोगिक परियोजना के रूप में खेती के लिए 500 बैग के साथ तीन बांस की झोपड़ियों में मशरूम की खेती पर काम शुरू किया था। इन झोंपड़ियों में उन्हें 15 प्रतिशत की उपज मिली। जिससे उत्साहित होकर वह इस खेती लगातार आगे बढ़ती गई।
चुनौतियों को करती रही स्वीकार
हिरेशा कहती है कि चुनौतियों को स्वीकार किया और हार नहीं मानी। प्रति दिन 20 किलोग्राम की मामूली मौसमी मात्रा के साथ शुरुआत की थी. आज उनके पास चारबा में आधुनिक उत्पादन उपकरणों और सुविधाओं से लैस एक मशरूम फार्म है, जिसकी उत्पादन क्षमता 1 टन प्रति दिन है।
15 लोगो को दिया रोजगार
मशरूम की खेती करके हिरेशा आज 15 लोगो.को वह रोजगार भी दे रही हैं और 2,000 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। अब वह मशरूम की शिताके और गनोडर्मा जैसे औषधीय प्रजाति भी उगाने लगी हैं,जो कैंसर रोधी, वायरल के खिलाफ एंटी-ऑक्सीडेंट हैं।
देश-विदेश में हुई पुरस्कृत
हिरेशा वर्मा अब मशुरूम के साथ ही वह अचार, कुकीज, नगेट्स, सूप, प्रोटीन पाउडर, चाय, पापड़ इत्यादि जैसे मशरूम के मूल्यवर्धित उत्पाद भी बना रही हैं. पौड़ी और गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों.मशरूम उगाने में किसानों की मदद कर रही हैं. इसके लिए उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।