सरकार Central Bank Of India को निजी हाथों में देने वाली है, इससे आपके खाते और उसमे जमा राशि पर क्या असर पड़ेगा
Privatization Of Central Bank of India: सरकार अब दो और सरकारी बैंको को निजी कंपनी के हाथों सौंपने की तैयारी कर रही है, सरकार ने सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया (Central Bank of India) के साथ इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Over seize bank) का प्राइवेटाइज़ेशन करने करने वाली है, सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र में एक बिल लाए जाने का अनुमान है, लेकिन सरकार का ये भी कहना है कि वह इन बैंको को पूरी तरह से प्राइवेटाइज़ेशन नहीं करेगी कम से कम सरकार बैंकों की 26% हिस्सेदारी अपने पास रखेगी।
वो सब तो ठीक है, बैंक प्राइवेट हो जाए जा किसी और बैंक में समाहित हो जाए आम आदमी ने जो उसमे पैसा जमा किया है बस उसके साथ कुछ नहीं होना चाहिए, अब दोनों बैंकों के प्राइवेटाइज़ेशन की बात सामने आई है तो मार्केट में ये चर्चा होने लगी है कि जिन लोगों ने पैसा जमा किया है उनकी राशि अब डूब जाएगी, तो चलिए इस भ्रम को दूर भगाते हैं और ये जानने की कोशिश करते हैं की इन दोनों बैंकों का प्राइवेटाइज़ेशन होने के बाद इनमें आपकी जमा राशि और बैंक खाते के साथ क्या होगा।
बैंकों के निजी हाथों में जाने के बाद अपनी सेविंग्स का क्या होगा
देखो मेरे दोस्त कोई भी बैंक हो चाहे निजी हो या फिर सरकारी सभी की निगरानी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) करता है, और सभी बैंक RBI के निर्देश में काम करते हैं, तो इसका मतलब ये है कि अगर कोई भी बैंक पूरी तरह ही क्यों ना प्राइवेट हो जाए इससे आपकी जमा राशि और बैंक खाते में कोई असर नहीं पड़ेगा, और ना ही जमा राशि की सुरक्षा में कोई दिक्क्त आएगी, हां एक बदलाव आपको ज़रूर देखने को मिलने वाला है और वो है सुविधा और सहूलियत। कहने का मतलब है कि अब सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया और ओवरसीज बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहकों को बैंक जाने पर सरकारी बैंक वाली ढीली-ढाली व्यवस्था देखने को नहीं मिलेगी।
लोन और ब्याज में क्या असर पड़ेगा
वैसे तो सरकारी बैंकों की तुलना में निजी बैंक लोन बड़े प्रेम से दे देते हैं, हां लेकिन इंटरेस्ट रेट में थोड़ा फर्क पड़ता है. प्राइवेट बैंक पुराने कस्टमर्स को ज़्यादा भाव नहीं देते लेकिन नए कस्टमर्स बनाने के लिए उन्हें कम इंटरेस्ट रेट में लोन ऑफर कर देते हैं हालांकि रेपो रेट का फायदा ग्राहकों को देरी से मिलता है,
सरकारी आंकड़ों पर नज़र फिराएं तो फरवरी 2019 से नवंबर 2020 के बीच सरकारी बैंकों के पुराने लोन पर इंटरेस्ट रेट में 0.94% की कटौती की, जबकि निजी बैंकों ने 0.54% की ही राहत दी, पर नया लोन लेने वाले ग्राहकों के लिए सरकारी बैंकों ने ब्याज दर 1.1% तक कम कर दी जबकि प्राइवेट बैंकों ने अपने ग्राहकों के लिए इंटरेस्ट रेट 1.76% तक कम कर दी।
प्राइवेट बैंक ये काम कर डालते हैं
अब प्राइवेट बैंकों में ग्रहकों को सुविधा और सहूलियत तो मिलती है लेकिन इसके बदले आपसे बैंक हिडन चार्जेस भी वसूल लेते हैं, आपको याद होगा कि लॉक डाउन के वक़्त निजी बैंकों ने मोबाइल के ज़रिये होने वाले UPI पेमेंट में हर महीने 20 ट्रांजेक्शन की लिमिट के बाद 2.5 से 5 रुपए तक चार्ज वसूलना शुरू दिया था, इसका मतलब यही है कि जितनी सुविधा तो उतना ज़्यादा शुल्क।
सरकारी स्कीमों के साथ क्या होगा
वैसे तो निजी बैंक सरकारी योजनाओं में ज़्यादा फोकस नहीं करते, खेती-किसानी सब्सिडी वाली योजनाए सरकारी बैंकों के माध्यम से ही संचालित होती हैं, निजी बैंक इन योजनाओं के बदले ज़्यादा शुल्क वसूलते हैं. सरकारी बैंकों की तुलना में प्राइवेट बैंक नए ग्रहकों को बीमा या फिर जमा योजनाओं जैसी अपनी कमर्शियल स्कीम्स से लुभाने की कोशिश करती है।
बैंक कर्मचारी की नौकरी भी प्राइवेट हो जाएगी?
सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक में लगभग 13 लाख से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं इन बैंकों को निजी हाथों में देने के बाद ऐसे कर्मचारियों को अपनी नौकरी को चिंता होने लगी है खास कर क्लर्क लेवल के कर्मचारियों को ज़्यादा दिक्क्त है क्योंकि प्राइवेट बैंकों में सरकारी बैंकों की तुलना में क्लर्क लेवल के वर्कर काफी कम होते हैं, अब ऐसा एक सावल उठता है कि इन दोनों बैंकों में काम करने वाले क्लर्क लेवल के कर्मचारियों का क्या होगा।
नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ बैंक वर्कर्स के पूर्व जनरल सेकेट्री का कहना है कि 'सबसे बड़ा संकट बैंक कर्मचारियों पर आएगा यह देखना होगा कि क्या सरकार बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक 2021 के तहत उनकी रोजीरोटी की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था करती है. पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए लगता है कि उनकी नौकरी पर खतरा बना रहेगा. इसके अलावा निजी बैंकों में आरक्षण नहीं होने से भी इस कटैगरी के मौजूदा कर्मचारियों और आने वाले नए कैंडिडेट्स के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी. बैंकिंग सेक्टर में रोजगार के मौके कम हो जाएंगे'