बांस का चावल: चावल की ऐसी वेराइटी जो 100 साल में सिर्फ 1-2 बार उगती है, इसका स्वाद सबसे अलग और कीमत..
Bamboo rice: चावल ऐसा अन्न है जिसके बिना सम्पूर्ण आहार की कल्पना नहीं की जा सकती। घर में दाल-चावल हो या फिर पुलाव और बिरियानी, सभी अलग-अलग व्यंजन बनाने के लिए अलग-अलग चावल की वेराइटी का इस्तेमाल किया जाता है। आपको मालूम है? भारत में चावल की 6 हज़ार से ज़्यादा वेराइटी है जिनमे से एक है बांस का चावल मतलब Bamboo Rice.
बैम्बू राइस ऐसे चावल प्रजाति है जो आपको किराने की दुकानों या फिर कहीं अनाज के भंडारों में नहीं मिलेगा। बैम्बू राइस को मुलयारी चावल (Mulayari Rice) भी कहा जाता है. बताया गया है कि यह मरते हुए बांस की आखिरी निशानी है
मरते बांस की आखिरी निशानी मतलब
बांस की झाड़ में जब फूल आने लगते हैं तो ऐसा माना जाता है कि झाड़ मरने वाली होती है, बैम्बू राइस को मरते बांस के पेड़ की आखिरी निशानी कहा जाता है। उस बांस के झाड़ में लगे फूलों में से एक विशेष प्रजाति का चावल उगता है। इसे खेतों में नहीं उगाया जाता बल्कि यह खुद बांस के फूलों से खुद ब खुद उगता है।
केरल के वायनाड सैंचुरी के आदिवासियों के लिए यह चावल ना सिर्फ जीने बल्कि कमाई का जरिया है। इस इलाके के लोग इसी चावल को इक्कठा कर आपका रोजगार चलाते हैं.
बांस के चावल की कटाई कैसे होती है
बांस की झाड़ में फूल लगाए नहीं जाते यह खुद से उगते हैं. और बांस की झाड़ में ऐसे चावल वाले फूल सिर्फ 50 साल में एक बार ही उगते हैं मतलब 100 सालों में सिर्फ 2 बार. चावल इक्कठा करने के लिए बांस के फूल के आस-पास सफाई की जाती है और फूल पर मिट्टी लपेटी जाती है. और जब वह मिट्टी सूख जाती है तो उसमे से बीनकर चावल के दानों को निकाला जाता है।
बांस का चावल खाने से क्या होता है
इस चावल में अन्य सामान्य चावल की तुलना में ज़्यादा पौष्टिक तत्व होते हैं. इसका स्वाद कुछ-कुछ गेंहूं जैसा होता है. इसका रंग बांस के रंग जैसा हरा होता है। इसे खाने से शुगर के मरीजों को फायदा होता है, और इसमें प्रोटीन की मात्रा भी ज़्यादा होती है. इसकी खासियत यह है कि इसमें फैट नहीं होता।
फ़िलहाल इस चावल की मार्केट में ज़्यादा डिमांड नहीं है और सप्लाई भी काफी कम है. क्योंकि इसकी खेती करना बहुत ज़्यादा समय लेने वाली है। चेन्नई में इसकी कीमत सिर्फ 100 से 120 रुपए किलो से शुरू होती है।