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अब गर्भाशय कैंसर के लिए जिम्मेदार एचपीवी वायरस का यूरिन सैंपल से चल जाएगा पता
गर्भाशय कैंसर के लिए जिम्मेदार एचपीवी वायरस का पता लगाने के लिए अब कठिन जांचें कराने की जरूरत नहीं रहेगी। इस वायरस का पता अब यूरिन सैंपल से आसानी से चल जाएगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल द्वारा किए गए शोध में यह सामने आया। एम्स के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग द्वारा महिलाओं पर यह शोध किया गया।
180 महिलाओं पर किया शोध
एम्स भोपाल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग द्वारा पूर्व कैंसर अवस्था व कैंसर से प्रभावित महिलाओं पर यह शोध किया गया। 180 महिलाओं पर किए गए शोध के दौरान यह सामने आया कि प्रभावित महिलाओं की शुरू की (फर्स्ट वाइडेड) यूरिन में भी एचपीवी टाइप 16 और 18 मौजूद रहता है। शोध के दौरान 35 से 65 वर्ष की महिलाओं को शामिल किया गया था। इस विधि में यूरिन सैंपल से डीएनए अलग कर पीसीआर जांच की जाती है। इसके नतीजे अभी मौजूद जांच लिक्विड बेस्ड साइटोलाजी (एलबीएस) की तुलना में 89 प्रतिशत तक सही पाए गए हैं।
जांच विधि लागू होने से महिलाओं को नहीं होगी समस्या
चिकित्सा सूत्रों की मानें तो गर्भाशय कैंसर के लिए एचपीवी 99.7 प्रतिशत तक जिम्मेदार माना जाता है। जिसकी जांच कराने के लिए महिलाओं को अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस दौरान महिलाओं के गर्भाशय के मुंह को खरोचकर झाग के साथ सेम्पल अस्पतालों में लिया जाता है। जिससे अधिकांश महिलाएं संकोच कर जाती हैं और अस्पताल जाने से बचती हैं। जांच की यह विधि लागू हो जाने से महिलाओं को समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। मुख्य शोधकर्ता एम्स के अतिरिक्त प्राध्यापक डॉ. अजय हलदार की मानें तो यह शोध स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय संगठन (फिगो) के जर्नरल में प्रकाशित हुआ है।
एचपीवी क्या है?
यौन संपर्क से ह्यूमन पेमिलोमा वायरस (एचपीवी) एक से दूसरे तक पहुंचता है। किशोरावस्था में टीका के जरिए एचपीवी के संक्रमण से बचा जा सकता है। लम्बे समय तक इस वायरस की मौजूदगी से गर्भाशय के कैंसर का खतरा बन जाता है। एचपीवी से प्रभावितों में 60 प्रतिशत महिलाएं और 40 प्रतिशत पुरुष होते हैं। किन्तु अधिकांश लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।