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BJP के लिए आसान नहीं 2019 की डगर, हिंदी पट्टी के राज्यों में पटखनी देकर कांग्रेस ऐसे दे रही है चुनौती
हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत के कई मायने हैं और इसके अलग-अलग मतलब निकाले जा सकते हैं। इस जीत से विपक्षी पार्टियों में संदेश गया है कि भाजपा अजेय पार्टी नहीं है उसे हराया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 की लहर कमजोर हो गई है और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी प्रबंधन को चुनौती दी सकती है। पिछले कुछ सालों में हिंदी पट्टी के राज्यों में जब भी भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की टक्कर हुई है उसमें भगवा पार्टी ने बाजी मारी है। लेकिन इस बार सीधी टक्कर में कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त देते हुए सत्ता में वापसी की है।
कांग्रेस की इस जीत में राहुल गांधी की बड़ी भूमिका रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी लगातार विधानसभा चुनाव हार रही थी। भाजपा एक तरफ अपने 'कांग्रेस मुक्त भारत' के अभियान पर बढ़ती जा रही थी। तो देश की सबसे पुरानी पार्टी के हाथ से एक-एक कर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, असम, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर के कई राज्य निकलते गए। कांग्रेस के सामने एक दौर ऐसा भी आया जब वह केवल हार रही थी। पार्टी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का मुकाबला कैसे करे। हार और निराशा की गर्त से पार्टी को उबारना राहुल के लिए एक बड़ी चुनौती थी। उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की और हारने वाली कांग्रेस को जीतने वाली पार्टी की राह पर आगे बढ़ाया।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बंपर जीत ने कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं में जिस उत्साह, जोश और उमंग का संचार किया है वह 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए बेहद अहम है। भाजपा को टक्कर देने में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों के मन में जो डर और संदेह था उसे इन चुनाव परिणामों ने दूर कर दिया है। कांग्रेस पार्टी अब बिना चेहरे के भी चुनाव जीत सकती है और मुद्दों के आधार पर वह जनता के बीच अपना जनाधार का विस्तार कर सकती है। यह जीत विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम करेगी और भविष्य में बनने वाला विपक्ष के गठबंधन के केंद्र में कांग्रेस होगी।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए कई सबक लेकर आए हैं। राजस्थान में भाजपा की हार की उम्मीद तो जताई जा रही थी लेकिन छत्तीसगढ़ में उसका हाल इस कदर बुरा होगा शायद इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। मध्य प्रदेश में कमोबेश पार्टी यही मानकर चल रही थी कि वह शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में अपनी सत्ता बचा ले जाएगी। इस हार के बाद भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति नहीं बदली तो उसे लोकसभा चुनावों में नकुसान उठाना पड़ा सकता है। एनडीए के सहयोगी दल उससे दूर जा सकते हैं।
हिंदी पट्टी के राज्य भाजपा की ताकत हैं। भाजपा को हिंदी प्रदेशों की पार्टी कहा जाता है। हाल के वर्षों में हालांकि उसने अपना विस्तार दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों तक कर लिया है। भाजपा को केंद्र की सत्ता में लाने में हिंदी प्रदेश बड़ी भूमिका निभाते आए हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से लोकसभा की 65 सीटें आती हैं। 2014 के चुनावों में भाजपा ने इनमें से 62 सीटों पर कब्जा जमाया था।
यूपी में लोकसभा की 80 सीटों में से भाजपा के खाते में 71 सीटें गईं। भगवा पार्टी को 282 के आंकड़े तक पहुंचाने में हिंदी भाषी राज्यों की जनता ने मदद की। हिंदी प्रदेश भाजपा के गढ़ हैं। इन प्रदेशों का किला यदि दरकता गया तो अमिश शाह के मिशन 2019 के अभियान को 'ग्रहण' लग सकता है। यह समय भाजपा के लिए आत्मचिंतन का है। उसे अपनी हार के कारणों पर गंभीरता से चिंतन-मनन करना होगा।
(प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक आलोक कुमार राव के निजी हैं और रीवा रियासत डॉट कॉम इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)