- Home
- /
- मध्यप्रदेश
- /
- भोपाल
- /
- मध्यप्रदेश में दस में...
मध्यप्रदेश में दस में से पांच महिलाओं व किशोरियों में खून की कमी, समीक्षा में आया सामने
सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद महिलाओं व किशोरियों की सेहत में सुधार नहीं आ रहा है। महिलाओं को एनीमिया से बचाने कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं किंतु उनको इससे निजात नहीं मिल पा रही है। प्रदेश में 50 प्रतिशत महिलाओं व किशोरियों में जहां खून की कमी है तो वहीं 30 प्रतिशत किशोर भी इससे ग्रस्त पाए गए हैं। वहीं प्रदेश में आठ प्रतिशत गर्भवती महिलाएं भी एनीमिया का शिकार पाई गई हैं। जिनमें एक प्रतिशत महिलाओं में एनीमिया का स्तर गंभीर है। यह जानकारी गत सप्ताह स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान द्वारा गर्भवती महिलाओं की जांच और उपचार की समीक्षा के दौरान सामने आई हैं।
इंदौर और शाजापुर की स्थिति अच्छी
एनीमिया जागरुकता सप्ताह का आयोजन 26 नवंबर से 2 दिसंबर के मध्य किया गया था। जिसके बाद बैठक में इसकी समीक्षा की गई। जिसमें पाया गया कि प्रदेश में दस जिले ऐसे हैं जहां 10 प्रतिशत से ज्यादा गर्भवती महिलाओं को कम खतरनाक श्रेणी का माडरेट एनीमिया है। 7 से 11 ग्राम हीमोग्लोबिन होने पर इस श्रेणी में माना जाता है। हीमोग्लोबिन के मामले में सबसे अच्छी स्थिति इंदौर और शाजापुर में है। यहां केवल 2.7 प्रतिशत महिलाएं ही माडरेट श्रेणी में हैं। वहीं गर्भवती महिलाओं में गंभीर एनीमिया औसत रूप से 0.7 प्रतिशत है। दूसरे नंबर पर भोपाल में तीन प्रतिशत गर्भवती गंभीर एनीमिया का शिकार हैं। सबसे बुरे हाल आलीराजपुर जिले का है जहां 3.60 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं गंभीर एनीमिया का शिकार हैं। एनीमिया के मामले में सबसे अच्छी स्थिति आगर मालवा जिले की है जहां गंभीर एनीमिया केवल 0.10 प्रतिशत को ही है।
रक्त की कमी के दुष्प्रभाव
खून की कमी प्रसूताओं की मौत की बड़ी वजह मानी जा सकती है। कुपोषण की बड़ी वजह भी रक्त की कमी है। चिकित्सकों की मानें तो जिन गर्भवती महिलाओं में खून की कमी यानी कि एनीमिया होता है उनके गर्भ में पल रहे शिशु के कुपोषित होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके साथ ही रक्त कम होने से शरीर में ऑक्सीजन की कम मात्रा पहुंच पाती है। जिसके कारण थकान और सांस फूलने जैसी समस्या सामने आती है। एनीमिया के चलते दिल की धड़कन तेज या अनियमित होने लगती है।
इनका कहना है
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी के मुताबिक एनीमिया को दूर करने के लिए सभी उम्र के लोगों के लिए एनीमिया मुक्त भारत अभियान चल रहा है। गर्भवती महिलाओं को आंगनबाड़ी केन्द्रों और अस्पतालों के जरिए जबकि किशोर-किशोरियों को स्कूलों में आयरन फोलिक एसिड की दवा दी जा रही है। विशेष अभियान के तहत घर-घर जाकर सर्वे भी किया जा रहा है। जिससे लोगों में इससे बचने के लिए जागरुकता पैदा हो सके।