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7 माह के भाई की पालनहार बनी 7 वर्ष की बहन, कोरोना के दूसरी लहर में लावारिश हुए थे 5 भाई-बहन
Bhind / भिंड। कई कहावतों में कहा गया है कि व्यक्ति बल बलवान नहीं होता है, सबसे बड़ा बलवान तो समय होता है। अगर समय ने विपरीत करवट ली तो बडे़ से बड़ा राजा रंक हो जाता है और रंक राजा बन जाता है। एक ऐसा ही वाकया भिंड जिले (Bhind district) का सामने आया है। कोरोना में माता-पिता की मौत हो जाने से अनाथ हुए 5 बच्चे सड़क पर आ गये। जिन्हे पालने की जवाबदारी 7 वर्ष की बहन पर थी। सबसे बडी परेशानी 7 माह के भाई को पालने में हो रही थी। लेकिन सीएम के समक्ष मामला आने के बाद उन्हे सहायता पहुंचाई गई।
भिंड के दबोह थाने के अमाहा गांव का मामला
भिंड जिले के दबोह थाना क्षेत्र के अमाहा गांव में एक ऐसा नजारा देखने को मिला जिसे देखने के बाद कलेजा मुह को आता है। मां-बाप की मौत के बाद 5 बच्चे अनाथ हो गये। परिवार के लोगों ने उनसे नाता तोड़ लिया। 2 भाई और 2 बहनों के पालने की जवाबदारी 7 वर्ष की निशा के कंधों पर आ गई। सबसे बडी जवाबदारी तो 7 माह के भाई गोलू की थी। बड़ी बहन होने के नाते निशा उसे गोद में लिए मां का फर्ज अदा करते हुए गांव के लोगों से खाना और दूध मांग लाती और भाई की परवरिश मां की तरह करती।
जब बात प्रदेश के मामा तक पहुंची तब बनी बात
पीड़ित का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उरई के रहने वाले है। पिता काफी समय से एमपी के भिंड में रहकर रिक्सा चलाने का काम करता था। कोरोना की दूसरी लहर में पहले पिता की मौत हो गई। बाद में मां की मौत हो गई। उनके पास मध्य प्रदेश का कोई दस्तावेज न होने से सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला। लेकिन जब इन बच्चों का एक मार्मिक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह तक पहुंचा तो सीएम ने तत्काल अधिकारियों को सहायता करने के निर्देश दिये। परिणाम स्वरूप निशा को उसके भाई बहनो के साथ बाल गृह भेज दिया गया है।
कोरोना में उजड़ गया परिवार
निशा के पिता राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण किया करता करता था। लेकिन वह कोरोना की चपेट में आ गया और उसकी मौत हो गई। जिसके बाद राघवेंन्द्र की पत्नी अपने बच्चों को लेकर यूपी के उरई गांव चली गई। बाद में निशा की मां गिरिजा की मौत हो गई। परिवार के लोग बच्चों को मिंड के अमाहा गांव में छोडकर चले गये।
अनाथ हो गये 5 बच्चे
माता गिरिजा तथा पिता राघवेन्द्र की मौत के बाद उनके बच्चे अनाथ हो गये। जिसमें निशा 7 वर्ष, बाबू राजा 5 वर्ष, अनीता 2 वर्ष, मनीषा 3 वर्ष तथा सबसे छोटा गोलू 7 माह शामिल है। इनके पास कोई मकान भी नही था। सभी एक झोपडे में पहले आपने मां बाप के साथ रहते थे। मध्य प्रदेश का कोई निवास या दस्तावेज न होने से इन बच्चों की कोई मदद नही हो पा रही थी।
मददगार थे गांव के लोग
गांव के लोगों से जितना बन पड़ता था वह मदद के लिए तैयार रहते थे। बताया जाता है कि निशा भाई के साथ गांव के लोगों के यहां पहुंच जाती थी तो उसकी हर सम्भव लोग सहायता करते थे। वहीं गांव के लोग तो उसके दस्तावेज बनवाने मे लगे थे। जिससे उन्हे सरकारी सहायता का लाभ मिल सके।