अब किसी भी कम्प्युटर-मोबाइल की सरकार कर सकती है जांच, जानिए इस फैसले से जुड़ी बड़ी बातें
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने देश की 10 खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी का अधिकार दे दिया। इसमें किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में दर्ज सारे डेटा जुटाने, उन पर नजर रखने और उन्हें डिक्रिप्ट करने का अधिकार शामिल है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि इसका मकसद इन सुविधाओं का कोई भी अनधिकृत इस्तेमाल रोकना है।
विपक्ष ने इस आदेश को सरकारी जासूसी की संज्ञा देते हुए मूलभूत अधिकारों व निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया है। वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह आदेश 2009 (संप्रग काल) के नियमों पर आधारित है।
कोई नया अधिकार नहीं दिया
गृह मंत्रालय ने गुरुवार रात यह आदेश जारी किया है। मंत्रालय ने शुक्रवार को बयान जारी कर स्पष्ट किया कि इसमें किसी भी खुफिया या सुरक्षा एजेंसी को कोई नया अधिकार नहीं दिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि यह आदेश गृह सचिव राजीव गौबा के अधीन कार्यरत 'साइबर एंड इंफर्मेशन सिक्यूरिटी' डिवीजन ने दिया है।
इसके अनुसार 10 केंद्रीय जांच व खुफिया एजेंसियां सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी भी कंप्यूटर पर नजर रख सकेंगी और उनमें दर्ज जानकारियों व सूचनाओं का विश्लेषण कर सकेंगी। ये एजेंसियां आईटी एक्ट 2000 की धारा 69 के तहत किसी भी कंप्यूटर, चाहे निजी हों या संस्थागत उनमें दर्ज रिकॉर्ड, सूचनाओं के आदान-प्रदान, स्टोर की गई सामग्री की निगरानी कर सकेंगी।
आईटी व टेलीग्राफ एक्ट में हैं प्रावधान मंत्रालय ने आदेश का विरोध होने पर जारी सफाई में कहा है कि आईटी एक्ट 2000 में पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम हैं। इतना ही नहीं टेलीग्राफ एक्ट में भी ये प्रावधान पहले से मौजूद हैं। मंत्रालय ने कहा है कि एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी व उसमें दर्ज सामग्री के डिक्रिप्शन से पूर्व सक्षम प्राधिकारी, जो कि गृह मंत्रालय है, से इजाजत लेना होगी।
आईटी (प्रक्रिया व सूचना सुरक्षा, निगरानी, डिक्रिप्शन) नियम 2009 की धारा 22 में राज्य सरकारों को भी यह अधिकार मिला हुआ है। कंप्यूटरों की निगरानी के मामले केंद्र में कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति के समक्ष रखे जाएंगे। वह दो माह में एक बार ऐसे मामलों की समीक्षा करेगी। राज्यों में इस समिति के प्रमुख मुख्य सचिव होंगे।
ये एजेंसियां रखेंगी नजर गुप्तचर ब्यूरो, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, ईडी, सीबीडीटी, डीआरआई, सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय, रॉ, सिग्नल गुप्तचर महानिदेशालय (सीमाई क्षेत्रों में कार्यरत), दिल्ली के पुलिस आयुक्त।
विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा से कर रहा खिलवाड़ : जेटली
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नागरिकों की जासूसी के विपक्षी आरोपों को खारिज किया है। राज्यसभा में इस मामले में हंगामा होने पर उन्होंने कहा कि यह आदेश 2009 के नियम के तहत दिया गया है। उस वक्त संप्रग की सरकार सत्ता में थी। यह नियम उसी का बनाया हुआ है। विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए तिल का ताड़ बना रहा है। यह नियम पहले से लागू है। समय-समय पर इसे पुनः जारी किया जाता है।
अघोषित आपातकाल खुल कर सामने आया : आजाद
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि 'अघोषित आपातकाल ने अंतिम रूप ले लिया है और वह उजागर हो गया है। आदेश में कहीं भी राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण यह कदम उठाने का जिक्र नहीं है। पूरे देश में यह आदेश लागू करना ठीक नहीं है। किसी खास हिस्से में यह लागू किया जा सकता है। क्या हम सब राष्ट्रद्रोही हैं। देश के 1.30 अरब लोग शंका के घेरे में आ गए हैं। हमारे कंप्यूटर व फोन चेक किए जाएंगे?
नेताओं के वार-पलटवार...
मूलभूत अधिकारों के दमन का यह गंभीर मामला है। भारत पुलिस राज्य बन जाएगा। -आनंद शर्मा, कांग्रेस नेता कांग्रेस आतंकियों व राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालों पर कार्रवाई नहीं चाहती। -रविशंकर प्रसाद, भाजपा नेता एकतरफा निगरानी नहीं की जा सकती। इस मामले में जनता की राय लेना चाहिए। जहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला हो, वहां इसे लागू किया जा सकता है। -ममता बनर्जी, तृणमूल प्रमुख जांच एजेंसियों को जासूसी का अधिकार नहीं दिया जा सकता। यह खतरनाक व निजता का हनन है। -नवाब मलिक, राकांपा नेता यह आदेश असंवैधानिक है। सरकार आम चुनाव से चंद माह पहले ऐसे कदम ना उठाए। - राम गोपाल यादव, सपा नेता हर भारतीय को अपराधी की तरह क्यों माना जा रहा है। नागरिकों की जासूसी का आदेश असंवैधानिक है। -सीताराम येचुरी, माकपा नेता