कहानी उस नेता की जो रीवा में बैठकर राजधानी में भूचाल मचा देते थे, आज स्व. श्रीनिवास तिवारी का जन्मदिन है
White Tiger Sriniwas Tiwari: 'दादा नहीं दऊ आय, वोट न देबे तउ आय' पं श्रीनिवास तिवारी के लिए बनाया गया यह नारा आज भी लोगों के जहन में गूंजता है.
Story Of Sriniwas Tiwari: विंध्य की धरती दो चीज़ों के लिए जानी जाती है पहला सफ़ेद बाघ 'मोहन' और दूसरा रीवा का सफ़ेद शेर 'स्व. पं. श्रीनिवास तिवारी', पं श्रीनिवास तिवारी रीवा के सफ़ेद शेर कहलाते थे, लोग उन्हें इज्जत से दादा ज़रूर बुलाते थे लेकिन उनके चाहने वालों के लिए वो 'दऊ' यानी के भगवान थे। जैसे ईश्वर की इच्छा के बगैर कोई पत्ता नहीं हिल सकता वैसे दादा श्रीनिवास की मर्जी के खिलाफ विंध्य में कोई इधर से उधर नहीं होता था। आज 17 सितंबर को स्व. पंडित श्रीनिवास तिवारी का जन्मदिन है। RewaRiyasat.com का यह लेख उन्हें समर्पित है।
जब शाहपुर में जन्मा विंध्य का कद्दावर नेता भगवान बन गया
17 सितंबर 1926 की बात है, दादा श्रीनिवास तिवारी का जन्म उनके ननिहाल शाहपुर में हुआ था, उनका गृहग्राम रीवा जिले का तिवनी था, वो वहीं पले बढे और वकालत की पढाई हासिल की। दादा ने छात्रजीवन से ही राजनीती में कदम रख दिया था, साथ ही देश के स्वतंत्रता आंदोलन में दादा ने खूब लड़ाइयां लड़ी थीं। पं. श्रीनिवास अपनी जवानी से ही सामंतवाद के खिलाफ थे, उनके लिए गरीबों पर होने वाला अत्याचार बर्दाश्त से बाहर था।
जब वो सिर्फ 22 साल के थे तब उन्होंने विंध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी को वजूद में लाया, वर्ष 1952 में मध्यप्रदेश के विधानसभा सस्दय बन गए थे. वो ऐसा वक़्त था जब किसी को यह अंदाजा नहीं था कि एक गरीब परिवार में जन्मा लड़का प्रदेश की राजनीती को पलट कर रख देगा।
चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं थे
वो एक गरीब किसान परिवार से संबध रखते थे, उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वो विधानसभा चुनाव लड़ सके. गांव के ही सज्जन कामता प्रसाद तिवारी ने उनकी मदद कि और अपने घर में पुश्तैनी सोने को गिरवी रख कर उन्होंने दादा को चुनाव लड़के के लिए 500 रुपए की मदद की. और पं तिवारी पहली बार मनगवां विधानसभा से विधायक बने।
फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा
दादा का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि बड़े-बड़े नेताओं का कद उनके आगे ठिगना दिखाई पड़ने लगा. जब साल 1973 में इंद्रा गांधी ने श्री तिवारी को कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करा ली तब उन्होंने दादा को सफ़ेद शेर कह कर पुकारा था। वर्ष 1980 में दादा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे और कुछ समय बाद इस पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन एमपी में अर्जुन सिंह की सरकार में वो हमेशा शामिल रहे और 1990 तक लगातार विधायक बनते रहे. वर्ष 1990 में उन्हें विधानसभा में उपाध्यक्ष बनाया गया और 1993 में दिग्विजय सिंह के सत्ता में आने के बाद श्री तिवारी मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष बन गए। इस दौरन वो स्पीकर भी थे.
जब गूंजा 'दादा नहीं दऊ आय वोट न देबे तउ आय, का नारा
साल 2008 में दादा चुनाव ज़रूर हार गए लेकिन उनकी लोकप्रियता और सम्मान पर कोई आंच नहीं आई, उनके चुनाव हारने के बाद दादा के सपोर्ट्स ने एक नारा दिया था जो आज भी लोगों के जहन में गूंजता है वो नारा था
दादा नहीं दऊ आय वोट न देबे तउ आय, अर्थात दादा नहीं भगवान है वोट नहीं मिले फिर भी वो भगवान ही हैं
अपने सिद्धांतों के प्रति वो अटल थे
जो व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर चलता है उसे महान बनने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है
दादा भी अपने सिद्धांतों के प्रति अटल थे, जब वो कांग्रेस में विधायक थे तब भी वो अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर देते थे, जिस मंत्री पद के लिए नेता बड़े नेताओं के आगे सिर पटकते हैं उसी पद को दादा ने सिर्फ अपने सिद्धांतों के लिए त्याग दिया था। एमपी के पूर्व मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह से उनका मतभेद तो चलता था लेकिन कभी मनभेद नहीं हुआ। दादा का स्वाभाव कुछ ऐसा था कि अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ बोलने से जरा भी हिचकिचाते नहीं थे। जो गलत है वो गलत है बात खतम....
जब अटल बिहारी वाजपेई ने कहा- सुना है यहां कोई शेर रहता है
एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का रीवा आना हुआ था भरी सभा में उन्होंने दादा के नाम का ईशारा करते हुए कहा था - सुना है यहां कोई सफ़ेद शेर रहता है, उनके सिर्फ इतना बोलते ही मंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था।
अत्याचारी कुंवरों के आतंक को ख़त्म कर दिया था
आज़ादी के पहले और बाद में रीवा में कुछ दबंगों का राज चलता था, दाऊ साहब लोगों का जो मन करता वो कर डालते थे, किसी की बहु-बेटी को उठा लेते थे, लोगों की हत्या कर देते थे, रास्ते में रोक कर किसी के सामने ही उसकी पत्नी को उठा लेते थे और किसी की इतनी मजाल नहीं थी कि वो कुंवर साहब के आगे चूं से चा कह दे। बस, जी दाऊ साहेब कह कर मुंडी हिला देते थे।
उस वक़्त का रीवा किसी बॉलीवुड की फिल्म जैसा था. जहां गांव में एक कुंवर साहेब रहते हैं और उनके बच्चे जनता को प्रताड़ित करते हैं, जो दाऊ साहेब करते वो जायज माना जाता था। लेकिन जब पं श्रीनिवास तिवारी का सत्ता में आना हुआ उन्होंने अत्याचारी लोगों की नाक अपनी जूती में रगड़वा दी, उनके वर्चस्व को कुचल के रख दिया।
उस वक़्त फलाने हॉउस- ढेकाने हॉउस नहीं सिर्फ अमहिया हॉउस का का नाम चलता था जिसमे दादा रहते थे। दादा जातिवादी नहीं थे उनके समर्थन में हर वर्ग हर जाति के लोग शामिल थे. या यूं कहें कि किसी की मजाल नहीं थी कि कोई दादा के खिलाफ जाने की हिमाकत कर पाता था। वो पंडित श्रीनिवास ही थे जिन्होंने रीवा से अत्याचारी दबंगों और वंषवादियों के तोते उड़ा दिए थे।
जब शोक में डूबा विंध्य
19 जनवरी 2018 को दादा की आत्मा ने देह का त्याग कर दिया, किसी को यह भरोसा नहीं हो रहा था कि आखिर भगवान कैसे मर सकता है। उनकी मृत्यु की खबर ने पूरे विंध्य को रुला दिया, शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने दादा की अंतिम यात्रा को देखा नहीं होगा। फूलों से सजी उनकी अंतिम यात्रा अपने आप में रुला देने वाली थी, एक शेर था जो हमेशा के लिए विंध्य को अनाथ कर के परमात्मा के पास चला गया था।
विंध्य के सफ़ेद शेर स्व पंडित श्रीनिवास तिवारी को RewaRiyasat.com का शत शत नमन...