REWA: कोरोना ने बदल दी ऑनलाइन की दुनिया, पढ़िए पूरी खबर
REWA: कोरोना काल में ऑनलाइन शॉपिंग में बड़ा उछाल आया है. इस दौरान ग्रॉसरी, किताबें, ब्यूटी सप्लाई, बच्चों के सामान जैसी चीजों की ऑनलाइन खरीदारी जमकर हुई है. बिना किसी संपर्क के तेज़ रफ्तार से अपने दरवाजे़ पर सामान मंगाने के लिए लोग धड़ल्ले से ऑनलाइन शॉपिंग का सहारा ले रहे हैं.
इनमें ज़रूरी और गै़र-ज़रूरी दोनों तरह के सामान शामिल हैं. अप्रैल में कनाडा में लॉकडाउन के चलते अपने घरों में फंसे हुए लोग कैन्ड क्वेल एग्स, सितार के तार और बच्चों के लिए ट्रैंपोलिन की ऑनलाइन खरीदारी कर रहे थे.
हड़बड़ाहट में होने वाली खरीदारी और जमाखोरी जैसी चीजों के साथ इस महामारी के तनाव ने हमारी खरीदारी की आदतों पर बड़ा असर डाला है.हालांकि, ऑनलाइन शॉपिंग सालों बल्कि दशकों से चली आ रही है, लेकिन वास्तव में यह मुख्यधारा में हाल में ही आई है. एमेज़न 90 के दशक के मध्य से हमारे बीच है, लेकिन यूएस में 2010 से ही ऑनलाइन शॉपिंग की कुल रिटेल सेल्स में हिस्सेदारी 6 फीसदी से थोड़ी ज़्यादा हुई है.
और अब? यूके में सेल्स के कुल फ़ीसदी हिसाब से देखें तो ऑनलाइन बिक्री 2006 में 3 फ़ीसदी थी जो कि 2020 में बढ़कर 19 फ़ीसदी पर पहुंच गई है. महामारी के चलते अप्रैल 2020 में तो यह बढ़कर 30 फ़ीसदी पर पहुंच गई.
उभरते देशों में यह एक क्रांति की शक्ल ले चुकी है. इन देशों में 2022 तक करीब तीन अरब इंटरनेट यूज़र होंगे. बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के आंकड़े के मुताबिक, यह संख्या विकसित देशों के मुकाबले तीन गुना ज़्यादा होगी. चीन में रिटेल में ऑनलाइन सेल्स की हिस्सेदारी पहले से ही 20 फ़ीसदी है. यह आंकड़ा यूएस, यूके, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों से बड़ा है.डिजिटल रूप से प्रभावी खर्च - जिसमें ऐसी खरीदारी को भी शुमार किया जाता है जहां लोग ऑनलाइन चीजें सर्च करते हैं और इन्हें ऑफलाइन खरीदते हैं - इमर्जिंग मार्केट्स में 4 लाख करोड़ डॉलर के करीब पहुंचने वाला है.
कोविड-19 से पहले हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में शॉपिंग के लिए इंटरनेट पर इतनी निर्भरता शायद पहले कभी नहीं थी. कुछ दशक पहले ऑनलाइन शॉपिंग एक बड़ी चीज़ मानी जाती थी. उस वक्त इंटरनेट तक पहुंच होना ही एक बड़ी चीज़ थी.आखिर ऑनलाइन शॉपिंग हमारी ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बन गई और महामारी के ख़त्म होने के बाद में चीजे़ं कैसी शक्ल लेंगी?