SC on EWS Reservation: जारी रहेगा 10% EWS आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आरक्षण संविधान के खिलाफ नहीं, पढ़ें जजों के फैसले
SC on EWS Reservation: सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोरो के लिए सरकार द्वारा दिए गए 10% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया है.
SC on EWS Reservation: सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोरो के लिए सरकार द्वारा दिए गए 10% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया है. SC के 5 न्यायाधीशों में से 3 ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को संविधान के खिलाफ नहीं माना है. यानी सामान्य वर्ग (general class) के आर्थिक रूप से कमजोर (financially weak) तबके के लिए यह आरक्षण जारी रहेगा.
सोमवार को EWS के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसला सुनाया है. EWS आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना है.
EWS के पक्ष में 3 जजों के फैसले पढ़िए...
1. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी- केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. आरक्षण 50% तय सीमा के आधार पर भी EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है.
2. जस्टिस बेला त्रिवेदी- मैं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी से सहमत हूं और यह मानती हूं कि EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है. यह बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखना जाना चाहिए. इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है.
3. जस्टिस पारदीवाला- जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी से सहमत होते समय मैं यहां कहना चाहता हूं कि आरक्षण की अंत नहीं है. इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, वरना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा. आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है. यह अभियान 7 दशक पहले शुरू हुआ था. डेवलपमेंट और एजुकेशन ने इस खाई को कम करने का काम किया है.
बता दें जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग (general class) के आर्थिक रूप से कमजोर (financially weak) तबके के लिए EWS आरक्षण लागू किया गया था. जिसके खिलाफ तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे चुनौती दी.
EWS आरक्षण को लेकर सुको में केंद्र की दलील
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा. उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे. यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है. यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है.
27 सितंबर को कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. CJI ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं. इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था. CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की.
EWS रिजर्वेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगातार जोरदार बहस हुई. वकीलों की दलील थी कि सवर्णों को आरक्षण देना संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा है. हालांकि SC इस बात से सहमत नहीं दिखा था. तब बेंच ने कहा था कि इस बात की जांच की जाएगी कि ये सही है या गलत. सितंबर में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई. इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ था. अब सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहराया है, साथ ही कहा है कि यह रिजर्वेशन संविधान के खिलाफ नहीं है.