Saraswati River: ऋग्वेद में लिखी बात हुई सच, प्रयागराज में संगम के नीचे मिली 12 हज़ार साल पुरानी सरस्वती नदी
Saraswati River: ऋग्वेद में लिखा था तो नहीं माना अब वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सर्वे किया तो सभी को विश्वास हो गया
Saraswati River: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में वैज्ञानिकों ने बहुत बड़ी खोज की है ये खोज भी ऐसी हुई है जिसके बारे में सनातन धर्म के वेद 'ऋग्वेद' में हज़ारों साल पहले ही बता दिया गया था, लेकिन वेदों में लिखी बातों को आज-कल के बुद्धिजीवी मानते कहां है सभी को साक्ष्य चाहिए। तो ये लो प्रयागराज के गंगा नदी के संगम के नीचे 12 हज़ार साल पुरानी और 45 किलोमीटर लंबी 'सरस्वती नदी की खोज वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सर्वे कर के की है।
ऐसी बहुत सी खोज हुई हैं जिनके बारे में वेदों और पुराणों में हज़ारों साल पहले ही लिख दिया गया था। यहां तक कि कई इतिहासकारों ने भविष्य पुराण का सहारा लेकर इतिहास लिखा है। अब जो लोग सरस्वती नदी के अस्तित्व को सिर्फ मिथक मानते थे उनकी बोलती बंद हो गई है। वैज्ञानिकों द्वारा प्रयागराज में किए गए इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सर्वे ने ऋग्वेद में लिखीं बातों पर मुहर लगा दी है।
सरस्वती नदी कल्पना नहीं वास्तविकता है
हम सब अपने पूर्वजों से यह सुनते आएहै कि एक काल में देश से पवित्र सरस्वती नदी बहती थी लेकिन जब दुनिया में पाप बढ़ने लगा तो सरस्वती नदी धरती के नीचे समा गईं। ये कहानी सुनने के बाद लगता था नदी धरती में कैसे समा जाएगी, वहीं कुछ बुद्धिजीवी वेदों और पुराणों में लिखी बातों को काल्पनिक और कहानी बताते हैं जबकि यही अखंड सच्चाई है। इस बात की पुष्टि समय-समय पर विज्ञान शोधों में मिलने वाले सबूत करते रहते हैं। अब तक मान्यता यही रही है कि हिंदुओं की धर्मनगरी प्रयागराज (Prayagraj Sangam) में तीन प्राचीन एवं पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। अब भारतीय वैज्ञानिकों को संगम के नीचे लगभग 12,000 साल पुरानी नदी मिली है। माना जा रहा है कि यह ऋग्वैदिक काल की पूज्य और अब विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी हो सकती है।
ये बहुत बड़ी खोज है
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे (Electromagnetic Survey) में इस बात के ठोस प्रमाण मिले हैं कि संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी यह प्राचीन नदी मौजूद है। वर्तमान में इस संगम तट पर गंगा और यमुना नदियों का मिलन होता है। ऐसे में इन दोनों की तलहटी में मौजूद सरस्वती नदी में जल का विशाल भंडार होने का अनुमान है। CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों के इस संयुक्त अध्ययन को अडवांस्टड अर्थ एंड स्पेस साइंस में पब्लिश किया गया है।
सरस्वती नदी के होने के प्रमाण मिल गए
दरअसल, साइंटिस्ट इस बात का पता कर रहे थे कि गंगा नदी के पानी की बढ़ती खपत के कारण गंगा और यमुना नदी पर कितना प्रभाव पड़ रहा है। नदियों पर पड़ने वाले इफेक्ट का सीधा असर पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर पड़ता है। नदियों को रीचार्ज करने वाली जमीन के नीचे मौजूद पुरातन नदियों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी हासिल करना चाह रहे थे, क्योंकि नदियों को सिर्फ हिमालय जैसे ग्लेशियरों से ही नहीं, बल्कि भूतल में मौजूद नदियों से भी जल मिलता है। इस का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक इस क्षेत्र का 3D मैपिंग करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे कर रहे थे।
साइंटिस्ट ने पाया कि विंध्य फॉर्मेशन के अंतर्गत आने वाली एक अति प्राचीन नदी गंगा और यमुना की तलहटी में मौजूद है। इस प्राचीन नदी ((Paleoriver) का एक्वीफर सिस्टम और पुरातन नहरें आपस में जुड़ी हुई हैं. और एक दूसरे की पानी की जरूरतों को पूरा कर रही हैं। इस प्राचीन नदी की लंबाई 45 किलोमीटर, चौड़ाई 4 किलोमीटर और गहराई 15 मीटर है। इसमें 2700 MCM रेत है और जब यह पानी से पूरी तरह भरी रहती है तो यह जमीन के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को सिंचित करने योग्य भूजल देती है। 1000 MCM जल क्षमता वाली यह नदी गंगा और यमुना में जल के स्तर को संतुलित करने का भी काम करती है।
धर्मग्रन्थ में क्या लिखा है
सनातनी धर्मग्रन्थ कहा गया है कि गंगा, यमुना और सरस्वती का उद्गम स्थल हिमालय पर्वत है। और वही चीज़ अध्ययन में इस बात को माना गया है कि खोज में मिली यह नदी संभवत: हिमालय तक जाती है। नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (National Geographic Research Institute) के निदेशक ने बताया कि यह नदी धरती की 10 मीटर नीचे गहराई में मौजूद है और 10,000 से 12,000 साल पुरानी है। उन्होंने कहा कि समुचित अध्ययन के बाद ही नदी के सही उम्र के बारे में जानकारी दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि सर्वे का काम जारी है और अभी तक पता चला है यह नदी कानपुर की ओर बह रही है।
प्राचीन नदियों की खोज के लिए जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित 7 सदस्यीय आयोग ने 2016 में अपनी रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि जमीन के अंदर प्राचीन नदी सरस्वती के बहने के साक्ष्य मौजूद हैं। साल 2018 में मंत्रालय ने राजस्थान और हरियाणा में सरस्वती नदी की खोज को लेकर काम शुरू किया गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय से निकलने वाली प्राचीन नदी अरब सागर में जाकर मिलती थी।