Infant Mortality Rate in Madhya Pradesh: सात माह के भीतर प्रदेश में 9 हजार नवजातों ने तोड़ा दम

MP Infant Mortality Rate: चिकित्सकों के लाख प्रयासों के बावजूद नवजातों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदेश में हो रही नवजातों की मौतों से स्वास्थ्य महकमे की नींद उड़ गई है। इस वर्ष अप्रैल से अक्टूबर माह के दौरान मध्य प्रदेश में 9043 नवजातों की मौत दर्ज की गई है।

Update: 2022-11-13 09:13 GMT

Infant Mortality Rate in Madhya Pradesh: चिकित्सकों के लाख प्रयासों के बावजूद नवजातों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदेश में हो रही नवजातों की मौतों से स्वास्थ्य महकमे की नींद उड़ गई है। सर्वाधिक मौतें नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में हो रही हैं। प्रदेश में सात माह के भीतर एसएनसीयू में नवजातों की रिकार्ड मौतें हुई हैं। इस वर्ष अप्रैल से अक्टूबर माह के दौरान मध्य प्रदेश में 9043 नवजातों की मौत दर्ज की गई है। प्रदेश में ग्वालियर, जबलपुर और रतलाम के एसएनसीयू में मृत्यु दर काफी अधिक है। जबकि सबसे बुरे हालात भोपाल के कमला नेहरू एसएनसीयू के बताए गए हैं। यहां बीते सात माह के दौरान 2620 नवजातों को भर्ती कराया गया था जिनमें से 673 को नहीं बचाया जा सका।

क्यों दम तोड़ रहे नवजात

Newborns are Dying Why: नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती होने वाले नवजातों को बचाने के स्वास्थ्य विभाग के प्रयास काम नहीं आ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि जितने बच्चे एसएनसीयू में उपचार के लिए भर्ती हो रहे हैं उनमें से आधे से अधिक बच्चे दूसरे अस्पतालों में जन्म लेते हैं। जब उसकी तबियत बिगड़ी तो परिजन पहले उसका स्थानीय स्तर पर उपचार कराते हैं और गंभीर हालत में जब उसे रेफर कर दिया जाता है तो उसे एसएनसीयू में उपचार के लिए लाया जाता है। जिसके चलते नवजातों की मौत का ग्राफ बढ़ रहा है।

नवजातों की मौत बढ़ने के कारण

Newborns Dying Reason: चिकित्सकों की मानें तो एसएनसीयू में नवजातों की बढ़ती मौतों के कुछ अन्य भी कारण हैं। जिनमें प्रदेश के एसएनसीयू में कई स्थानों में एसी खराब हैं। तो वहीं क्षमता से अधिक नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती होते हैं जो संक्रमण का कारण बनता है। वहीं नवजातों को सेप्सीस, निमोनिया और टिटनेस व डायरिया होने के कारण भी उनकी मौते हुईं। जबकि बर्थ एक्फेक्सिया जिससे शिशु को सांस लेने में कठिनाई होती है और प्री-मैच्योर यानी कम वजन वाले बच्चों की भी एसएनसीयू में मौत का कारण बनती है। प्रदेश की भोपाल ही नहीं बल्कि अन्य शहरों की भी एसएनसीयू की हालत खराब है। जबलपुर एसएनसीयू में अप्रैल से अक्टूबर माह के मध्य जहां 492 नवजातों ने दम तोड़ा तो वहीं रीवा के एसएनसीयू में 486 नवजातों की मौत हुई है। रतलाम में भी करीब 390 नवजातों ने दम तोड़ा है।

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