कौन थे सैम मानेकशॉ जिनकी बायोग्राफी पर फिल्म सैम बहादुर रिलीज होने वाली है

Story Of Sam Manekshaw: सैम मानेकशॉ भारत के सबसे बहादुर और महान सैन्य अफसर थे

Update: 2023-07-01 07:30 GMT

सैम मानेकशॉ की कहानी: भारत के सबसे बहादुर और महानतम सैन्य अधिकारी सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) की बायोग्राफी पर बनी फिल्म 'सैम बहादुर' (Sam Bahadur) की रिलीज डेट आउट हो गई है. इस फिल्म में विक्की कौशल (Vicky Kaushal) फीड मार्शल सैम मानेकशॉ का किरदार अदा कर रहे हैं और विक्की का लुक हूबहू पूर्व सेना प्रमुख जैसा लग रहा है. 

कौन थे सैम मानेकशॉ 

Who Was Sam Manekshaw: फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का पूरा नाम 'सैम होर्मसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ' (Sam Hormusji Framji Jamshedji Manekshaw) था. भारतीय सेना में फील्ड मार्शल का पद और टाइटल पाने वाले वह पहले सैन्य अधिकारी थे. 1971 में जब भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ था तब भारतीय सेना की कमान सैम मानेकशॉ पर थी 

सैम मानेकशॉ की जीवनी

Sam Manekshaw Biography in Hindi: भारतीय सेना में सैम मानेकशॉ का शानदार करियर रहा. जो 4 दशक तक चला. सैम बहादुर ने अपने सैन्य करियर में 5 युद्ध लड़े. 1969 में वह भारतीय सेना के आठवें सेना प्रमुख बने थे. बांग्लादेश को पाकिस्तान से छुड़ाने में सैम मानिकशॉ की प्रमुख भूमिका थी. कायदे से बांग्लादेशीयों को भारतीय सेना और फील्ड मार्शल Sam Manekshaw की पूजा करनी चाहिए। 

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 में अमृतसर पुंजाब में हुआ था. उनकी स्कूलिंग शेरवुड कॉलेज नैनीताल और ग्रैजुएशन हिंदू सभा कॉलेज, अमृतसर, पंजाब भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में हुआ था. सैम बहादुर के पिता का नाम होर्मिज़द मानेकशॉ और मां का नाम हिल्ला था. वह धर्म से पारसी थे. सैम बहादुर के पिता पेशे से डॉक्टर थे जिनके 6 बच्चे थे जिनमे से सैम अपने पेरेंट्स की पांचवी औलाद थे. 

सैम बहादुर की कहानी 

Story Of Sam Bahadur: सैम अपने पिता की तरह पहले डॉक्टर बनना चाहते थे. उन्हें मेडिसिन की पढाई करने के लिए लंदन जाना था. मगर उनके पिता ने उन्हें भारत में रहकर पढाई करने के लिए कहा, सैम इस बात से नाराज हो गए और सेना में शामिल हो गए. 

इसके बाद मानेकशॉ ने देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) की प्रवेश परीक्षा में बैठने का फैसला किया और सफल हुए। इसके बाद वे 1 अक्टूबर 1932 को भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) देहरादून के लिए चुने गए और 4 फरवरी 1934 को वहां से पास हुए और ब्रिटिश भारतीय सेना (स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना) में सेकंड लेफ्टिनेंट बने। 

सैम बहादुर ने 40 साल भारतीय सेना की सेवा की, इस दौरान पाकिस्तान से 3 और चीन के साथ एक युद्ध किया। 1969 में उन्हें भारतीय सेना का आठवां सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व किया और उन्हें भारत का पहला फील्ड मार्शल बनाया गया।

सैम मानेकशॉ को दूसरी बटालियन, फिर द रॉयल स्कॉट्स (एक ब्रिटिश बटालियन), और फिर चौथी बटालियन और फिर 12वीं फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट (54वीं सिख) में कमीशन दिया गया, जब उन्हें सेना में कमीशन दिया गया। 

जापानियों से लड़ा युद्ध 

वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान फील्ड मार्शल सैम अपनी सेना के साथ बर्मा में थे. उनकी टुकड़ी के 50% सैनिक शहीद हो चुके थे. लेकिन सैम ने हार नहीं मानी और जापानी सैनिकों का डट कर सामना किया और जीत हासिल की. 1942 से देश की आजादी और विभाजन तक उन्हें कई महत्वपूर्ण कार्य दिए गए। 1947 में विभाजन के बाद, उनकी मूल इकाई (12 वीं फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट) पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई, जिसके बाद उन्हें 16 वीं पंजाब रेजिमेंट में नियुक्त किया गया। इसके बाद, उन्हें तीसरी बटालियन और 5वीं गोरखा राइफल्स में नियुक्त किया गया। 

 1947-48 के जम्मू-कश्मीर अभियान के दौरान, उन्होंने युद्ध दक्षता भी दिखाई। एक इन्फैंट्री ब्रिगेड के नेतृत्व के बाद, उन्हें महू में इन्फैंट्री स्कूल का कमांडेंट बनाया गया और 8वीं गोरखा राइफल्स और 61वीं कैवेलरी के कर्नल भी बने।

इसके बाद सैम बहादुर को जम्मू-कश्मीर में एक डिवीजन का कमांडेंट बनाया गया जिसके बाद वे डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज के कमांडेंट बने। इस बीच, तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन के साथ सैम बहादुर के मतभेद थे जिसके बाद उनके खिलाफ 'कोर्ट ऑफ इंक्वायरी' का आदेश दिया गया था जिसमें उन्हें दोषी पाया गया था। इन सभी विवादों के बीच, चीन ने भारत पर आक्रमण किया और मानेकशॉ को लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में पदोन्नत किया गया और सेना की चौथी वाहिनी की कमान संभालने के लिए तेजपुर भेजा गया।

1963 में, फील्ड मार्शल को सेना कमांडर के पद पर पदोन्नत किया गया और उन्हें पश्चिमी कमान की जिम्मेदारी दी गई। 1964 में, उन्हें पूर्वी सेना के जीओसी-इन-सी के रूप में शिमला से कोलकाता भेजा गया था। इस दौरान उन्होंने नागालैंड से आतंकवादी गतिविधियों का सफलतापूर्वक सफाया कर दिया, जिसके कारण उन्हें 1968 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 

सैम मानेकशॉ और 1971 का युद्ध 

बांग्लादेश से पाकिस्तान को अलग करने की रणनीति तैयार हो रही थी. तत्कानील प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आर्मी चीफ सैम बहादुर को बुलाया और पुछा 'क्या तुम तैयार हो?' सैम ने मना कर दिया और कहा 'मैं तय करूंगा की सेना युद्ध के लिए कब जाएगी' दिसंबर 1971 में भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर दिया, युद्ध शुरू होने के 15 दिन बाद पाकिस्तान ने हथियार डाल दिए. भारतीय सेना ने 90,000 पाक सैनिकों को बंधक बना लिया।  

1972 में सैम मानेकशॉ को पदम् विभूषण से सम्मानित किया गया. और 1 जनवरी 1973 को उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया. 15 जनवरी 1973 के दिन मानेकशॉ सेवानिवृत हो गए और अपनी पत्नी के साथ कुन्नूर में जाकर बस गए. मानेकशॉ की मृत्यु 27 जून 2008 को निमोनिया के कारण वेलिंगटन (तमिलनाडु) के आर्मी अस्पताल में हुई थी। मृत्यु के समय वे 94 वर्ष के थे।

फिल्म सैम बहादुर 

विक्की कौशल स्टारर फिल्म सैम बहादुर की रिलीज डेट जारी हो गई है. और टीजर भी सामने आया है. यह फिल्म 1 दिसंबर 2023 के दिन रिलीज होगी 


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