Aryabhatta Jayanti: शून्य की खोज के अलावा आर्यभट्ट को कितना जानते हैं आप?
आर्यभट्ट ने शून्य की खोज के अलावा क्या किया? (What did Aryabhatta do apart from discovering zero)
Discoveries Of Aryabhatta: 'आर्यभट्ट' यह नाम सुनते ही दिमाग में सिर्फ शून्य यानी की '0' की छवि बनती है. जाहिर है क्योंकि आर्यभट ने पूरी दुनिया को '0' दिया और इंसान गणित और विज्ञान में विकास कर पाया, '0' की खोज दुनिया के लिए कितनी अहमियत रखती है यह बताने की जरूरत नहीं है लेकिन आर्यभट ने सिर्फ शून्य की खोज नहीं की बल्कि उन्होंने ऐसी कई पुस्तके और सूत्र लिखे हैं जो हमारे बौद्धिक विकास और खगोलीय ज्ञान को बढ़ाने में बहुत सहायक बने. लेकिन दुर्भाग्य से ज़्यादातर लोग सिर्फ इतना ही जानते हैं कि आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की, शून्य की खोज के अलावा आर्यभट्ट ने क्या किया (What did Aryabhatta do apart from discovering zero) यह बहुत कम लोग जानते हैं. 14 अप्रेल को महान गणितज्ञ और खलोगशास्त्री आर्यभट्ट की जयंती मनाई जाती है.
आर्यभट्ट की कहानी
Story Of Aryabhatta In Hindi: आर्यभट्ट प्राचीन समय के महान गणितज्ञ और खलोगशास्त्री थे. खगोलीय विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा हैं. जब पूरी दुनिया यह मानती थी कि पृथ्वी चपटी है और समुद्र के उस पार कुछ नहीं है तब आर्यभट ने बता दिया था कि दुनिया गोल है, जब लोग मानते थे कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है तब आर्यभट्ट ने बता दिया था कि पृथ्वी एक निश्चित दूर को बनाए रखते हुए सूर्य का चक्कर काटती है
आधुनिक विज्ञान में इस सिद्धांत का क्रेडिट निकोलस कॉपरनिकस को दिया जाता है मगर जो बात निकोलस कॉपरनिकस ने हमें बताई वही चीज़ आर्यभट्ट ने 1000 साल पहले बता दी थी
आर्यभट्ट की जीवनी
Biography Of Aryabhatta: आर्यभट्ट का जन्म 464 AD में हुआ था. उनके जन्म को लेकर इतिहासकारों ने दो तरह की बातें कहीं हैं. कहा जाता है कि आर्यभट्ट बुद्ध के समयकाल के थे और उनका जन्म मध्य भारत में नर्मदा और गोदावरी के बीच में हुआ था.
दूसरे इतिहासकार कहते हैं कि आर्यभट्ट गुप्त शासनकाल के समकालीन थे और उनका जन्म पाटलिपुत्र के पास कुसुमपुर में हुआ था. गुप्तकाल को भारत के प्राचीन इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है. नालंदा विश्विद्यालय इसी समय बनाया गया था और आर्यभट्ट नालंदा से जुड़े हुए थे. समुद्रगुप्त के शासनकाल से ही भारत में कला, विज्ञान और गणित का विकास होना शुरू हुआ था. कहा जाता है कि आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे
आर्यभट्ट ने शून्य की खोज के अलावा क्या किया
आर्यभट्ट ने विज्ञान और गणित से जुडी 4 किताबें लिखीं थीं. जिन्हे संस्कृत में लिखा गया था
- आर्यभट्टिया (Aryabhattiya)
- दशगीतिका (DashGeetika)
- तंत्र (Tantra)
- आर्यभट्ट सिद्धांत (Aryabhatta Siddhanta)
आर्यभट्टीय किताब में क्या लिखा है?
आर्यभट्ट ने अपनी रचना आर्यभट्टीय एक ज्योतिष ग्रंथ है. इस रचना में वर्गमूल, घनमूल, सामानांतर क्षेणी जैसे कई प्रकार के गणिनीय समीकरण हैं. इस ग्रन्थ में 33 श्लोक गणितीय हैं और 75 श्लोक खगोल विज्ञान के सिद्धांतों और यंत्रो पर आधारित हैं. आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं.इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं।
इस पुस्तक में 4 चैप्टर हैं
- गीतिपादक- इसमें आर्यभट्ट ने ग्रहों के परिभ्रमण को 4.32 मिलियन वर्ष बताया था
- गणितपद- इसमें ज्यामितीय और गणितीय सूत्र हैं जैसे शंकु, शंकु छाया, सरल, द्विघात, युगपात, अनिश्चित समीकरण
- कालक्रियापद- इसमें आर्यभट्ट ने समय की इकाइयां, ग्रहों की चाल, स्थति, अधीकमास, क्षय तिथियां, सप्ताह के 7 दिन और उनके नाम, एक सप्ताह 7 दिन का जैसे सूत्र लिखे हैं
- गोलपाद- इस चैप्टर में आकाशीय भूमध्य रेखा, त्रिकोणमिति के पहलू, दिन और रात के कारण, क्षतिज पर राशिचक्रीय संकेत, पृथ्वी का आकर, आदि सूत्र लिखे हैं
आर्य सिद्धांत में क्या लिखा है
आर्य सिद्धांत अब लुप्त हो चुका है, कोई यह नहीं जानता कि उस रचना में क्या लिखा था. लेकिन उनके समकालीन वराहमहिर की रचनाओं से मालूम होता है कि आर्य सिद्धांत 'सूर्य सिद्धांत' था. इसकी रचना के लिए आर्यभट्ट ने सूर्य की गतिविधयां, उसका साइज़, सूर्य की परछाई, जल घड़ियाँ और इनके लिए इस्तेमाल होने वाले यंत्रों के बारे में लिखा था
जिन खोज के लिए कोपर्निकस को श्रेय दिया जाता है उनकी खोज आर्यभट्ट ने 1000 साल पहले कर दी थी. वो आर्यभट्ट ही थे जिन्होंने सबसे पहले बताया था कि 'पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है. आर्यभट्ट ने चारो युगो को एक सामान बताया है. उनका कहना था कि ''एक कल्प में 14 मन्वन्तर और एक मन्वन्तर में 72 महायुग तथा एक चतुर्यग में सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग सामान हैं
चंद्रग्रहण के बारे में आर्यभट्ट ने ही बताया था
पहले भारतीय लोग मानते थे कि चन्द्रग्रहण में राहु नाम का एक दानव चन्द्रमा को निगल जाता है, क्योंकि राहु का कोई धढ़ नहीं है इसी लिए चंदमा उसके गले से निकल जाता है. लेकिन आर्यभट्ट ने इस धारणा को गलत बताते हुए चन्द्रग्रहण की सही परिभाषा दी थी.
आर्यभट्ट ने ऐसी कई खोज और रचनाएं की हैं जिन्हे समझकर विदेशी वैज्ञानिकों ने अपनी खोज बता दी और दुनिया उन्हें ही उन खोजों का असली खोजकर्ता मानाने लगी.